काशी में शवों के दाह संस्कार की अनोखी परंपराएं
काशी: मोक्ष की नगरी
भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी काशी, जिसे मोक्षदायिनी कहा जाता है, अपनी विशेष परंपराओं और मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर चिताएं कभी बुझती नहीं हैं, क्योंकि अंतिम संस्कार की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र शहर में कुछ शवों का दाह संस्कार नहीं किया जाता? हाल ही में एक नाविक द्वारा साझा किए गए एक वायरल वीडियो ने इस रहस्य को उजागर किया है.
काशी: मोक्ष का द्वार
हिंदू धर्म में काशी को सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सीधे बैकुंठ धाम की यात्रा करता है। यही कारण है कि लोग अपने जीवन के अंतिम क्षणों में काशी की ओर रुख करते हैं। काशी की गलियों में आस्था और परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, लेकिन कुछ मान्यताएं इसे और भी रहस्यमयी बनाती हैं.
साधु-संतों की जल समाधि
नाविक ने बताया कि काशी में साधु-संतों, 12 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, सर्पदंश से मरे लोगों और कुष्ठ रोगियों का दाह संस्कार नहीं किया जाता। साधु-संतों को भगवान का निकट माना जाता है, और उनकी मृत्यु के बाद जल समाधि या थल समाधि दी जाती है। यह परंपरा उनके प्रति सम्मान और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को पूर्ण करने का प्रतीक है.
बच्चों का दाह संस्कार
12 साल से कम उम्र के बच्चों को हिंदू धर्म में भगवान का स्वरूप माना जाता है। उनकी पवित्र आत्मा को चिता की आग में भस्म करना अशुभ माना जाता है। इसलिए उनकी देह को गंगा में प्रवाहित किया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले। यह परंपरा काशी की धार्मिक मान्यताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
गर्भवती महिलाओं का दाह संस्कार
गर्भवती महिलाओं के शव को जलाने से मना किया जाता है। मान्यता है कि उनके गर्भ में पल रहे भ्रूण के कारण चिता पर शरीर का पेट फट सकता है, जिससे दृश्य अशोभनीय हो सकता है। अतः उनकी देह को भी गंगा में प्रवाहित किया जाता है, जो मां और शिशु दोनों के प्रति सम्मान को दर्शाता है.
सर्पदंश और कुष्ठ रोगियों की मान्यता
सर्पदंश से मरे व्यक्ति की देह को जलाने की अनुमति नहीं है। नाविक ने कहा कि मान्यता है कि उनके शरीर में कुछ समय तक प्राण रहते हैं और तांत्रिक उन्हें जीवित कर सकता है। वहीं कुष्ठ या चर्म रोग से पीड़ित व्यक्तियों की देह जलाने से रोग फैलने की आशंका मानी जाती है। ये सभी परंपराएं काशी की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं से जुड़ी हैं.
आस्था और परंपराओं का संगम
काशी की ये परंपराएं न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती हैं, बल्कि सामाजिक संवेदनाओं को भी उजागर करती हैं। ये मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं और आज भी स्थानीय लोग इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं.