×

अचलेश्वर महादेव मंदिर: रंग बदलने वाला अद्भुत शिवलिंग

अचलेश्वर महादेव मंदिर, जो राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, एक अद्भुत धार्मिक स्थल है जहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। इस मंदिर का शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। जानें इस मंदिर की पौराणिक कथाएँ और इसकी विशेषताएँ, जो इसे एक अनोखा स्थान बनाती हैं।
 

अचलेश्वर महादेव का अनोखा मंदिर


राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित अचलेश्वर महादेव का मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ भगवान शिव के लिंग की पूजा नहीं, बल्कि उनके अंगूठे की पूजा की जाती है। यहाँ भगवान शिव अंगूठे के रूप में विराजमान हैं और इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है।


यह मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है। माउंट आबू, जो राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है, को 'अर्धकाशी' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार, वाराणसी शिव की नगरी है, जबकि माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी है।


मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दिखाई देता है, जिसके ऊपर एक पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिसे स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यह अंगूठा भगवान शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है। मान्यता है कि इसी अंगूठे ने माउंट आबू के पहाड़ को थाम रखा है।


इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहाँ का शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। सुबह इसका रंग लाल होता है, दोपहर में यह केसरिया हो जाता है, और शाम को यह उजले रंग में बदल जाता है। यह अद्भुत घटना मंदिर की स्थापना के 2500 साल बाद भी जारी है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहाँ आज आबू पर्वत स्थित है, वहाँ पहले विराट ब्रह्म खाई थी। वशिष्ठ मुनि की गाय कामधेनु एक बार वहाँ गिर गई थी, जिसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती और गंगा का आह्वान किया। इसके बाद, हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर नंदी वद्रधन को भेजा।


नंदी वद्रधन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए। वशिष्ठ ने यह वरदान दिया और अर्बुद नाग ने पर्वत का नामकरण अपने नाम से किया। नंदी वद्रधन खाई में उतरा, लेकिन केवल उसकी नाक और ऊपर का हिस्सा ही बाहर रहा। तब वशिष्ठ के अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे को पसार कर इसे स्थिर किया। तभी से यहाँ अचलेश्वर महादेव के रूप में पूजा की जाती है।