उदय तिथि: हिंदू पंचांग में तिथियों का महत्व
उदय तिथि का महत्व
उदय तिथि: हिंदू पंचांग में 12 महीनों का एक वर्ष, 30 दिनों का एक महीना और 7 दिनों का एक सप्ताह होता है। हिंदू त्योहारों, उपवासों और उत्सवों की तिथियाँ महत्वपूर्ण होती हैं, इसलिए यह समझना आवश्यक है कि किस दिन उपवास या त्योहार मनाना सही है। तिथि और दिन में अंतर होता है; तिथि 19 से 24 घंटे की होती है, जबकि दिन और रात मिलाकर 24 घंटे होते हैं। इस प्रकार, अक्सर एक ही दिन में दो तिथियाँ होती हैं। आइए इस विषय पर विस्तार से जानते हैं।
30 तिथियों के नाम
पूर्णिमा (Poornamasi), प्रतिपदा (Padwa), द्वितीया (Duj), तृतीया (Teej), चतुर्थी (Chauth), पंचमी (Panchami), षष्ठी (Chhath), सप्तमी (Satam), अष्टमी (Aatham), नवमी (Nauami), दशमी (Dasam), एकादशी (Gyaras), द्वादशी (Baras), त्रयोदशी (Teras), चतुर्दशी (Chaudas), और अमावस्या (Amavasya) के नाम हैं।
कृष्ण और शुक्ल पक्ष
तिथियाँ दो भागों में विभाजित होती हैं। पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष की 15 तिथियाँ होती हैं और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष की 15 तिथियाँ होती हैं, जिससे कुल 30 तिथियाँ बनती हैं। हालांकि, तिथियों के केवल 16 नाम होते हैं।
त्योहारों और उपवासों का समय
उपवास और त्योहार मनाने से पहले यह जानना आवश्यक है कि हिंदू धर्म में कौन से त्योहार दिन में मनाए जाते हैं और कौन से रात में। जैसे, दीवाली, दशहरा, नरक चतुर्दशी, नवरात्रि, शिवरात्रि, होली, जन्माष्टमी, और लोहड़ी जैसे त्योहार रात में मनाए जाते हैं। इसलिए, उदय तिथि का इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। वहीं, गणेश चतुर्थी, पितृ पक्ष, राम नवमी, हनुमान जयंती, रक्षा बंधन, भाई दूज, गोवर्धन पूजा, रथ सप्तमी, छठ पूजा आदि दिन में मनाए जाते हैं, इसलिए उदय तिथि का इस पर ध्यान रखा जाता है। इसी तरह, एकादशी, चतुर्थी, और प्रदोष उपवास भी उदय तिथि के अनुसार रखने चाहिए, लेकिन इस पर स्मार्त और वैष्णव संप्रदायों में मतभेद है।
उदय तिथि क्या है?
उदय तिथि का अर्थ है वह तिथि जो सूर्योदय के साथ शुरू होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई तिथि सूर्योदय के पहले प्रहर में शुरू होती है, तो इसे उदय तिथि माना जाता है। यदि कोई तिथि दोपहर या शाम को शुरू होती है और अगले दिन दोपहर या शाम को समाप्त होती है, तो उस दिन का त्योहार या उपवास अगले दिन मनाया जाता है।
उदय तिथि का समय
पंचांग के अनुसार, किसी भी उदय तिथि का समय 19 से 24 घंटे से अधिक नहीं हो सकता। यह तिथियों का अंतर सूर्य और चंद्रमा के बीच के अंतर से तय होता है। यदि किसी तिथि का समय दिन के बीच में है और अगली तिथि उसी दिन के मध्य से शुरू होती है, तो उसकी मान्यता पहले तिथि से अधिक नहीं होगी।
उपवास और त्योहारों का समय
मध्य व्यापिनी (किसी भी तिथि के मध्य भाग में)
प्रदोष व्यापिनी (किसी भी तिथि के अपराह्न भाग में)
अर्ध व्यापिनी (किसी भी तिथि के संध्या भाग में)
निशिथ व्यापिनी (किसी भी तिथि के रात्रि भाग में)
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