हेल्थ इंश्योरेंस में शिकायतों की संख्या में तेजी से वृद्धि, जानें कारण
हेल्थ इंश्योरेंस की शिकायतों में वृद्धि
हेल्थ इंश्योरेंस की शिकायतें
भारत में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति जागरूकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विशेषकर कोविड-19 के बाद। लोग चिकित्सा खर्चों से बचने के लिए पॉलिसी ले रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही शिकायतों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई के इंश्योरेंस ओम्बड्समैन कार्यालय के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले छह वर्षों में हेल्थ इंश्योरेंस से संबंधित शिकायतें लगभग दोगुनी हो गई हैं और अब ये सभी बीमा शिकायतों का सबसे बड़ा हिस्सा बन चुकी हैं।
शिकायतों की संख्या में वृद्धि
ओम्बड्समैन कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी लगभग 3,700 शिकायतें दर्ज की गई थीं, जबकि 2023-24 तक यह संख्या 7,700 के पार पहुंच गई है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी यही प्रवृत्ति जारी है। कुल शिकायतों में हेल्थ इंश्योरेंस का हिस्सा लगभग 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी: अवसर और चुनौतियाँ
इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी, यानी एक कंपनी से दूसरी कंपनी में पॉलिसी ट्रांसफर करने की सुविधा, उपभोक्ताओं के लिए लाभकारी है। हालांकि, कई बार लोग यह नहीं समझ पाते कि नई पॉलिसी में कौन-कौन सी शर्तें बदल गई हैं। इससे पुराने वेटिंग पीरियड या कवरेज को लेकर गलतफहमी क्लेम के समय समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
सेटलमेंट प्रक्रिया में जटिलताएँ
कुछ मामलों में, अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच सेटलमेंट प्रक्रिया जटिल हो जाती है। नेटवर्क हॉस्पिटल बदलने या कैशलेस से रीइंबर्समेंट मोड में जाने पर क्लेम अटक सकता है। इस सेटलमेंट स्वैपिंग के कारण मरीज को इलाज के बाद लंबे समय तक पैसे का इंतजार करना पड़ता है, जिससे शिकायतें बढ़ती हैं।
सामान्य शिकायतें
हेल्थ इंश्योरेंस में सबसे अधिक शिकायतें क्लेम से संबंधित होती हैं। कई मामलों में क्लेम की राशि पूरी नहीं मिलती या किसी कारणवश क्लेम खारिज कर दिया जाता है। कंपनियाँ अक्सर कहती हैं कि इलाज की आवश्यकता नहीं थी, अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं था, या फिर इलाज OPD में किया जा सकता था। कई बार मेडिकल हिस्ट्री पूरी तरह न बताने के आधार पर भी क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं।
जीवन बीमा में भी विवाद
हेल्थ इंश्योरेंस के अलावा, जीवन बीमा में भी शिकायतें सामने आती हैं। यहाँ सबसे बड़ा कारण मिस-सेलिंग है। ग्राहकों को अधिक रिटर्न का लालच देकर पॉलिसी बेची जाती है, लेकिन बाद में शर्तें कुछ और निकलती हैं। प्रीमियम, एन्युटी और बेनिफिट्स की सही जानकारी न मिलने से विवाद उत्पन्न होते हैं।
भविष्य की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि हेल्थकेयर सेक्टर के लिए एक अलग रेगुलेटर की आवश्यकता है। इसके साथ ही बीमा कंपनियों को पॉलिसी की भाषा को सरल बनाना होगा और ग्राहकों को मेडिकल जानकारी पूरी ईमानदारी से देनी होगी। जागरूक ग्राहक और पारदर्शी प्रणाली ही इन बढ़ती शिकायतों पर नियंत्रण कर सकती हैं।