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संघ की शताब्दी: डॉ. प्रवीण अग्रवाल का अनुभव और प्रेरणा

डॉ. प्रवीण अग्रवाल ने संघ की शताब्दी पर अपने अनुभव साझा किए हैं, जिसमें उन्होंने संघ के अनुशासन, सेवा और समाज में समरसता के महत्व पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि संघ की गतिविधियों ने उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला है। वे बताते हैं कि कैसे संघ ने उन्हें निस्वार्थ सेवा का संस्कार दिया और समाज में जाति भेद को समाप्त करने का प्रयास किया। इस लेख में संघ की सौ साल की यात्रा और इसके आदर्शों की चर्चा की गई है, जो पाठकों को प्रेरित करेगी।
 

संघ से मिली प्रेरणा का महत्व


ग्वालियर के प्रतिष्ठित व्यवसायी डॉ. प्रवीण अग्रवाल का कहना है कि संघ की शाखा से मिली प्रेरणा उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है। वे बताते हैं कि वे लगभग चार दशकों से संघ के बारे में सुनते आ रहे हैं और बचपन में कुछ समय के लिए शाखा में भी गए थे। उनके कई सहपाठी आज भी संघ की गतिविधियों में सक्रिय हैं। डॉ. अग्रवाल का मानना है कि भले ही वे नियमित रूप से संघ कार्य में शामिल नहीं हो पाए, लेकिन बचपन में मिली संस्कार और आत्मबोध उनके लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बने रहे हैं।


संघ की सौ साल की यात्रा

बचपन में शाखा जाने का अनुभव


डॉ. अग्रवाल के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी केवल एक संगठन का इतिहास नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, संस्कार और राष्ट्र निर्माण की निरंतर परंपरा है। चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने संगठन की दीर्घकालिक कार्यशैली का अनुभव किया है। संघ की शताब्दी के संदर्भ में, वे इसकी यात्रा और मापदंडों को और गहराई से समझते हैं।


संघ का अनुशासन और सेवा का आदर्श

संघ: विचार आधारित संगठन


डॉ. अग्रवाल का मानना है कि संघ एक शक्ति आधारित संस्था नहीं, बल्कि एक विचार आधारित संगठन है। इसमें सेवा, राष्ट्र, समाज और सनातन संस्कृति का समावेश है। आज के समय में जब छोटे कार्यों को भी पुरस्कार से जोड़ा जाने लगा है, संघ निस्वार्थ सेवा की परंपरा का उदाहरण प्रस्तुत करता है। जब भी कोई आपदा आती है, संघ के स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार के सबसे पहले प्रभावित लोगों के बीच उपस्थित रहते हैं।


समाज में समरसता का अनुभव

मोहल्ले से रोटियां एकत्रित करने का अनुभव


डॉ. अग्रवाल ने बताया कि ग्वालियर में संघ के आयोजनों में जाति भेद का कोई स्थान नहीं है। उन्हें याद है कि शिविरार्थियों के लिए मोहल्ले-मोहल्ले से रोटियां एकत्रित की जाती थीं। यह समाज के लिए एक बड़ा उदाहरण है, जो सामाजिक न्याय की बात करते हैं। बचपन में यह कार्य साधारण लगता था, लेकिन अब इसका महत्व उन्हें समझ में आता है।


संघ की सौ साल की यात्रा का महत्व

संगठन की स्थिरता


किसी भी संगठन के लिए सौ वर्ष पूरे करना एक बड़ी उपलब्धि है। डॉ. अग्रवाल ने चेम्बर ऑफ कॉमर्स का उदाहरण देते हुए कहा कि यह यात्रा अनुशासन और स्पष्ट दृष्टिकोण का परिणाम है। यदि कोई संगठन सौ वर्ष तक सुरक्षित रहा है, तो उसके अगले सौ वर्ष भी सुरक्षित रहने की संभावना अधिक होती है।


कोरोना संकट में संघ की भूमिका

संघ की सेवा का आदर्श


डॉ. अग्रवाल ने कोरोना संकट के दौरान संघ के स्वयंसेवकों की सेवा की सराहना की। उन्होंने देखा कि संघ के स्वयंसेवक भोजन और दवाइयां लेकर ग्वालियर के कमजोर लोगों तक पहुंचे। यह सेवा सम्पूर्ण समाज के लिए थी और संघ का आदर्श है।


परिवार का संघ से जुड़ाव

परिवार में संघ का संस्कार


डॉ. अग्रवाल का कहना है कि उनके परिवार का संघ से गहरा रिश्ता है। उनके ससुर डॉ. सुरेश बंसल भिंड में संघ से जुड़े हुए हैं और उनका पूरा परिवार संघ की गतिविधियों में सक्रिय रहा है। इस कारण उनकी पत्नी के संस्कारों में भी संघ का अनुशासन और सामाजिक दृष्टि झलकती है।