विनोद खन्ना: एक फिल्मी जीवन की कहानी और राजनीति में सफलता
विनोद खन्ना का जीवन: एक नाटकीय सफर
6 अक्टूबर 1946 को जन्मे विनोद खन्ना का जीवन कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा। उन्होंने फिल्म उद्योग में सुपरस्टार बनने के बाद अचानक संन्यास लेने का निर्णय लिया, फिर से फिल्मों में वापसी की और राजनीति में कदम रखा, जहां वे केंद्रीय मंत्री बने।
दिसंबर 1997 में जब खन्ना ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया, तो उन्हें अगले साल फरवरी में लोकसभा चुनाव में पंजाब के गुरदासपुर से लड़ने का निर्देश मिला, जो उन्हें चौंका गया।
चुनौती को स्वीकार करना
खन्ना ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें यह भी नहीं पता था कि गुरदासपुर कहां है। फिर भी, उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और कांग्रेस की प्रमुख नेता सुखबंस कौर भिंडर को हराकर भाजपा का झंडा फहराया। इसके बाद उन्होंने इसी निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार जीत हासिल की।
फिल्मी करियर और ओशो का प्रभाव
खन्ना का फिल्मी करियर 1960 के दशक के अंत में शुरू हुआ। उनकी आकर्षक छवि और स्टार अपील ने उन्हें जल्दी ही सफलता दिलाई। 1970 के दशक के अंत तक, वे अमिताभ बच्चन के साथ कई मल्टी-स्टारर फिल्मों में नजर आए।
एक समय, वे आचार्य रजनीश 'ओशो' के विचारों से प्रभावित हुए और उन्होंने अपने करियर को छोड़कर अध्यात्म की ओर रुख किया। हालांकि, चार साल बाद उन्होंने वापसी का निर्णय लिया।
राजनीति में कदम
खन्ना ने 1998 में भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्हें हिंदुत्व में गहरी आस्था थी। उन्होंने कहा कि यह चुनाव लड़ने का सही समय था। उन्होंने हेमा मालिनी को भी राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।
खन्ना के निधन के बाद, मालिनी ने स्वीकार किया कि वे उनके राजनीतिक करियर की प्रेरणा थे।
विपक्षी उम्मीदवार के चहेते हीरो
2009 में, विनोद खन्ना को गुरदासपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा ने हराया। दिलचस्प बात यह है कि खन्ना कभी बाजवा के पसंदीदा अभिनेता थे।
बाजवा ने कहा कि वे खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ने से हिचकिचा रहे थे, लेकिन अंततः उन्होंने चुनाव लड़ा।
केंद्रीय मंत्री के रूप में योगदान
खन्ना उन बॉलीवुड सितारों में से थे जिन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बनने का अवसर मिला। जुलाई 2002 में, उन्हें केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री बनाया गया।
उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पिता का विरोध और करियर की शुरुआत
विनोद खन्ना की फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री एक दिलचस्प कहानी है। उनके पिता चाहते थे कि वे पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हों। लेकिन खन्ना ने 1968 में सुनील दत्त से मुलाकात के बाद फिल्मी करियर की ओर कदम बढ़ाया।
जब उनकी पहली फिल्म 'मन का मीत' 1969 में रिलीज हुई, तो उनकी अदाकारी की सराहना हुई और उन्हें एक ही सप्ताह में 15 फिल्मों के ऑफर मिले।