रेल और सिनेमा: संगीत में जीवन का संदेश
रेल का रोमांस और सिनेमा
रेल का मानव जीवन से गहरा संबंध हमेशा से रोमांटिक रहा है। जब रेल की यात्रा सीमित पटरियों तक थी, तब ग्रामीणों के बीच इसके बारे में मजेदार किस्से बनते थे। जैसे-जैसे रेल का विस्तार हुआ, यात्रियों के अनुभवों को सुनाने का चलन बढ़ा। कहानी, कविता, उपन्यास, लोक गीत और लोक कथाओं में रेल का जिक्र हमेशा से दर्शकों के दिलों को छूता रहा है। अब जब रेल हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है, तो सिनेमा भी इससे अछूता नहीं रह सकता। चाहे 1940 के दशक में पंकज मलिक का गाया 'आई बहार' हो या 1950 के दशक में सुरैया और तलत का 'राही मतवाले', हर गीत ने दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी है।
फिल्म 'जब प्यार किसी से होता है' में आशा पारेख जिस रेलगाड़ी में सफर कर रही होती हैं, उसी के साथ देव आनंद का गाना 'जिया हो, जिया हो जिया कुछ बोल दो' गूंजता है। इसी तरह, राजेश खन्ना का 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू' भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। 'आशीर्वाद' में दादामुनी की हांफनी और 'किताब' का 'धन्नो की आँखों में' जैसे प्रयोग भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं। रेल पर फिल्माए गए गीतों में 'अपनी तो हर आह इक तूफान है' जैसे गाने हमें एक अद्भुत अनुभव देते हैं।
इन गीतों में 'दोस्त' का 'गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है' गीत अद्वितीय है। आनंद बक्शी की लेखनी और लक्ष्मी-प्यारे का संगीत इस गीत को खास बनाते हैं। गाने की शुरुआत चर्च के घंटे और कोयले के इंजिन की आवाज से होती है, जो इसे एक अलौकिक अनुभव प्रदान करती है।
कॉलेज की पढ़ाई के बाद मानव (धर्मेन्द्र) फादर फ्रांसिस (अभि भट्टाचार्य) के पास लौट रहा है। रेल की तेज रफ्तार और खिड़की से बाहर का नजारा उसे नई जीवन यात्रा की ओर ले जाता है।
फादर फ्रांसिस की चिट्ठी पढ़ते हुए मानव गाता है:
गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है
चलना ही ज़िंदगी है, चलती ही जा रही है
फिर मौसम बदलता है और बारिश शुरू होती है। मानव दरवाजे से बाहर झांकता है और गाता है:
आगे तूफान, पीछे बरसात, ऊपर गगन से बिजली
तारादेवी स्टेशन पर उतरकर मानव चर्च की ओर दौड़ता है, लेकिन उसे पता चलता है कि फादर फ्रांसिस का निधन हो चुका है। मानव फादर की कब्र पर जाकर शॉल चढ़ाता है और गाता है:
आते हैं लोग, जाते हैं लोग, पानी में जैसे रेले
फादर की दी हुई शिक्षा और किताबों का बक्सा लेकर मानव एक नई यात्रा शुरू करता है। गोपी (शत्रुध्न सिन्हा) उसे अपने पास ठहरने का प्रस्ताव देता है। मानव इस उम्मीद से स्वीकार करता है कि गोपी सुधर जाएगा।
गोपी और मानव नौकरी की तलाश में निकलते हैं। दोनों के बीच एक शर्त होती है कि यदि किसी को नौकरी मिल गई, तो गोपी सच्चाई के रास्ते पर चलेगा। अंततः, मानव को अपने जीवन का नया सबक मिलता है।
फिल्म का यह प्रेरक और भावनात्मक हिस्सा आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है, खासकर इस गीत के कारण, जिसमें जीवन का गहरा संदेश छिपा है।