बासु चटर्जी की 'छोटी सी बात': एक रोमांटिक क्लासिक की कहानी
बासु चटर्जी की अद्भुत फिल्म
‘छोटी सी बात’ में अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा
छोटी सी बात एक साधारण शीर्षक लग सकता है, लेकिन यह फिल्म जीवन की छोटी-छोटी यादों और उनके महत्व को बखूबी दर्शाती है। बासु चटर्जी की यह कृति हास्य के साथ-साथ गहरे भावनात्मक पहलुओं को भी उजागर करती है। 1975-76 के दौर में जब बड़े एक्शन और ड्रामा फिल्में चलन में थीं, तब चटर्जी ने इस फिल्म के माध्यम से रिश्तों की संवेदनाओं को बखूबी पेश किया।
इस समय में जब एक्शन और थ्रिलर फिल्मों का बोलबाला था, बासु चटर्जी जैसे कुछ निर्देशकों ने संवेदनाओं पर आधारित सिनेमा बनाने का साहस दिखाया। गुलज़ार और बासु चटर्जी ने अपने अनोखे दृष्टिकोण से दर्शकों को एक नई दिशा दिखाई।
तारीखों का विवाद
फिल्म की रिलीज की तारीख को लेकर कुछ भ्रम है। विकीपीडिया के अनुसार, इसकी प्रारंभिक रिलीज 9 जनवरी 1975 है, जबकि सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट पर 31 दिसंबर 1975 की तारीख है। वहीं, आईएमडीबी पर इसे 9 जनवरी 1976 के रूप में दर्शाया गया है। इस विवाद से परे, फिल्म की गहराई और महत्व को समझना ज्यादा जरूरी है।
कहानी मुंबई के परिवेश में सेट है, जहां एक ओर अंडरवर्ल्ड की छवि है, वहीं दूसरी ओर प्यार और संवेदनाओं की खोज की जा रही है।
स्टार कास्ट का जादू
फिल्म में धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों की झलक भी है, जो उस समय के सुपरस्टारडम को दर्शाती है। अमिताभ बच्चन इस फिल्म के समय 'ज़मीर' की शूटिंग कर रहे थे, और फिल्म में कई बार 'ज़मीर' का पोस्टर भी दिखाई देता है।
यह फिल्म वास्तव में 1960 की ब्रिटिश फिल्म 'स्कूल फॉर स्कैंडल्स' का हिंदी रीमेक है। इसमें अमोल पालेकर ने एक शर्मीले युवक का किरदार निभाया है, जो अपनी प्रेमिका से बात करने में झिझकता है।
प्रेम कहानी का विकास
अरुण और प्रभा (विद्या सिन्हा) की मुलाकात बस स्टॉप पर होती है, जहां वे एक साथ बस का इंतजार करते हैं। अरुण प्रभा की सादगी और सुंदरता से प्रभावित होता है, लेकिन अपनी झिझक के कारण उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने में कठिनाई होती है।
नागेश का किरदार
फिल्म में असरानी ने नागेश का किरदार निभाया है, जो आत्मविश्वास से भरा है और अरुण से आगे निकल जाता है। यह संघर्ष अरुण के भीतर की कुंठा को उजागर करता है।
अरुण का परिवर्तन
अरुण का किरदार एक मेकओवर के दौर से गुजरता है, जहां वह अशोक कुमार के मार्गदर्शन में आत्मविश्वास प्राप्त करता है। फिल्म का अंत प्रेरणादायक है, जब प्रभा को अरुण की सच्चाई का पता चलता है।
फिल्मफेयर अवार्ड
इस फिल्म ने बासु चटर्जी को सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए फिल्मफेयर अवार्ड दिलाया। फिल्म के संवाद और गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
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