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धनुष की इडली कढ़ाई: OTT पर सफलता, थिएटर में असफलता का रहस्य

धनुष की फिल्म 'इडली कढ़ाई' ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सफलता हासिल की है, जबकि थिएटर में यह असफल रही। यह फिल्म एक साधारण परिवार की कहानी है जो अपने पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को संजोने का प्रयास करती है। जानें कि कैसे मुरली, जो बैंकॉक में करियर बनाने की कोशिश कर रहा है, अपने माता-पिता की विरासत के बीच फंस जाता है। इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और पटकथा इसे असाधारण बनाती है। क्या मुरली अपने परिवार की परंपरा को अपनाएगा या आधुनिक जीवन की ओर बढ़ेगा? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

इडली कढ़ाई: लोकल से ग्लोबल की यात्रा

इडली कढ़ाई:ग्लोबल से लोकल की ओर


धनुष की हालिया फिल्म 'इडली कढ़ाई' में एक ऐसा मनोरंजन का अनुभव है जो दर्शकों को गहराई से सोचने और भावनाओं से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है। यह फिल्म केवल एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की यात्रा को दर्शाती है जो विदेश से लौटकर अपने पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को संजोने का प्रयास करते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस तरह की देसी फिल्में अक्सर थिएटर में दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पातीं। दर्शक आमतौर पर थ्रिलर, रोमांस और भव्य कहानियों की तलाश में होते हैं। हाल के समय में साउथ की कई बड़ी बजट वाली फिल्में जैसे 'पुष्पा', 'कांतारा', और 'केजीएफ' ने इस ट्रेंड को बढ़ावा दिया है, जबकि 'इडली कढ़ाई' की कहानी एकदम साधारण और वास्तविक है।


धनुष ने इस फिल्म में न केवल अभिनय किया है, बल्कि निर्देशन और लेखन का कार्य भी संभाला है, जैसे कि ऋषभ शेट्टी ने 'कांतारा' में किया था। इस फिल्म में न तो विशाल जंगलों का चित्रण है और न ही कोई दैवीय कल्पना। धनुष ने अपने परिवार, माता-पिता, गांव, और कुलदेवता के प्रति श्रद्धा को कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है। 'इडली कढ़ाई' और इडली की दुकान केवल पारिवारिक पेशे का प्रतीक हैं। धनुष अपने मुरली किरदार के माध्यम से ग्रामीण संस्कृति की गरिमा और उसके प्रति समर्पण को दर्शाते हैं.


थिएटर में असफलता, OTT पर सफलता

क्योंकि 'इडली कढ़ाई' में न तो ऊंची छलांगें हैं और न ही आसमान में गूंजती चीखें, शायद यही कारण है कि यह फिल्म थिएटर में असफल रही। दर्शक आमतौर पर भव्यता और तामझाम की आदत डाल चुके हैं। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर, इस फिल्म ने दर्शकों का दिल जीत लिया है। नेटफ्लिक्स पर यह फिल्म ट्रेंड कर रही है, और जो लोग इसे देख चुके हैं, वे इसके भावनात्मक पहलू से जुड़ गए हैं। यह साबित करता है कि ओटीटी और थिएटर के दर्शक वर्ग अलग हैं। गंभीर विषयों को ओटीटी पर अधिक सराहा जाता है।


'इडली कढ़ाई' एक साधारण परिवार की कहानी है जो खेतों और झुग्गियों में रहती है। शिवनेसन (राजकिरण) अपनी पत्नी कस्तूरी के साथ मिलकर अपने गांव में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। उनकी इडली पूरे जिले में प्रसिद्ध है। शिव की इडली का स्वाद इतना लाजवाब है कि लोग कहते हैं कि उसमें जादू है। वह इसे दिल से बनाते हैं।


शिव अपनी दुकान को मंदिर मानते हैं और हर चीज को देवता की तरह मानते हैं। उनका बेटा मुरली (धनुष) हमेशा अपने माता-पिता की मेहनत को देखता है। वह सुबह तीन बजे उठकर पूजा करता है और इडली बनाता है, जैसे वह मंदिर का प्रसाद बांट रहा हो।


बैंकॉक से गांव की वापसी

लेकिन जैसे-जैसे मुरली बड़ा होता है, उसके विचार बदलने लगते हैं। वह आधुनिक जीवन जीने की चाह रखता है और पहले मद्रास जाता है, फिर बैंकॉक में विष्णु वर्धन (सत्यराज) की कंपनी में ऊंचा पद प्राप्त करता है। वहीं उसे विष्णु वर्धन की बेटी मीरा (शालिनी पांडे) से प्यार हो जाता है। उनकी सगाई भी होती है, लेकिन शादी से पहले उसे अपने पिता के निधन की खबर मिलती है।


वह अपने पिता के अंतिम संस्कार के बाद गांव लौटता है, लेकिन इसी बीच उसकी मां भी गुजर जाती हैं। अब मुरली के सामने दो विकल्प हैं: माता-पिता की विरासत और इडली की दुकान या बैंकॉक में करियर और मंगेतर का प्यार। मुरली क्या निर्णय लेता है, यह जानने के लिए नेटफ्लिक्स पर इस फिल्म को देखें।


सिनेमैटोग्राफी और पटकथा

'इडली कढ़ाई' की कहानी साधारण लगती है, लेकिन इसे देखने पर इसका क्राफ्ट इसे असाधारण बना देता है। धनुष ने अभिनय, निर्देशन और लेखन में अपनी अलग पहचान बनाई है। सिनेमैटोग्राफी ने पटकथा को जीवंत बना दिया है। जब मुरली अपने गांव लौटता है, तो उसकी यादें उसे घेरे में ले लेती हैं। माता-पिता की फोटो फ्रेम में उनके दृष्टिकोण को भी दर्शाया गया है, जो एक अनोखा दृश्य है।


इस फिल्म में धनुष के अलावा सत्यराज, शालिनी पांडे और नित्या मेनन ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। धनुष और नित्या मेनन की जोड़ी फिल्म की कहानी को और भी खास बनाती है।


ग्लोबल से लोकल का संदेश

फिल्म में यह संदेश दिया गया है कि अगर लोग अपने परिवार की परंपराओं और ग्रामीण संस्कृति को नजरअंदाज करके केवल ऊंचे करियर और भव्य जीवन की चाह में महानगरों की ओर बढ़ते हैं, तो देश की ग्रामीण संस्कृति और अर्थव्यवस्था का क्या होगा। यह फिल्म ग्लोबल से लोकल की ओर एक सकारात्मक संदेश देती है।