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दूध से बने कपड़े: फैशन की नई क्रांति

दूध से बने कपड़े अब फैशन की दुनिया में एक नई क्रांति लेकर आए हैं। जानें कैसे खराब दूध का उपयोग कर इसे बनाया जाता है और इसके अनोखे फायदे क्या हैं। इस लेख में हम दूध से बने कपड़ों की प्रक्रिया, कीमत और उनके इतिहास पर चर्चा करेंगे। क्या आप जानते हैं कि यह कपड़ा रेशम से भी ज्यादा मुलायम है? पढ़ें और जानें इस अनोखी फैशन तकनीक के बारे में।
 

दूध से बने कपड़ों का अनोखा सफर


दूध के कपड़े: जिस दूध को आप अक्सर फेंक देते हैं, उसी का उपयोग अब डिजाइनर साड़ी, स्टोल, कुर्ते और अन्य हाई-फैशन वस्त्रों के निर्माण में किया जा रहा है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह फैशन उद्योग की एक अनोखी खोज बन चुकी है।


इस कपड़े को मिल्क फैब्रिक कहा जाता है, जो दिखने में रेशम के समान मुलायम और पहनने में अत्यंत आरामदायक होता है। दूध से बने ये कपड़े अब ठंड से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।


कितना दूध और कीमत:


1 लीटर दूध से केवल 10 ग्राम मिल्क फाइबर प्राप्त होता है। एक साधारण टी-शर्ट बनाने के लिए 60-70 लीटर दूध की आवश्यकता होती है। इस कारण से यह फैब्रिक बहुत महंगा है और केवल प्रीमियम ब्रांड्स ही इसका उपयोग कर पा रहे हैं। मिल्क फैब्रिक की कीमत 15,000 से 45,000 रुपये प्रति मीटर तक हो सकती है। यदि आप एक साड़ी खरीदना चाहते हैं, तो इसकी कीमत 3 से 5 लाख रुपये तक हो सकती है। अब सवाल यह है कि यह इतना महंगा क्यों है और दूध से कपड़ा कैसे बनता है? हम आपके इन सवालों के जवाब लेकर आए हैं।


कौन बना रहा है दूध से कपड़े?


दुनिया तेजी से सस्टेनेबल फैशन की ओर बढ़ रही है। लोग अब प्लास्टिक से बने पॉलिएस्टर को छोड़कर ऐसे कपड़े चुनना चाहते हैं जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। इसी सोच ने मिल्क फैब्रिक को जन्म दिया है। इसका श्रेय जर्मनी की एक इनोवेटिव कंपनी Qmilk को जाता है।


Qmilk कोई साधारण फैशन ब्रांड नहीं है। यह कंपनी ताजा दूध का उपयोग नहीं करती, बल्कि इंडस्ट्रियल वेस्ट मिल्क का उपयोग करती है, यानी ऐसा दूध जो खराब हो चुका होता है और हर साल लाखों टन की मात्रा में फेंक दिया जाता है। अकेले यूरोप में हर साल लगभग 20 लाख टन दूध बर्बाद होता है, और इसी बेकार दूध को Qmilk अमूल्य फैब्रिक में बदल रही है।


दूध से कपड़ा बनाने की प्रक्रिया:


1. सबसे पहले दूध को फाड़ा जाता है, जिससे ठोस हिस्सा (कर्ड) अलग हो जाता है।


2. कर्ड से केसिन प्रोटीन निकाला जाता है, जो आगे जाकर फैब्रिक का आधार बनता है।


3. केसिन को पानी में घोलकर लिक्विड बनाया जाता है, ताकि इसे मशीन में आसानी से प्रोसेस किया जा सके।


4. इस लिक्विड को स्पिनिंग मशीन से रेशों में बदला जाता है।


5. तैयार रेशों को धागे की तरह स्पिन किया जाता है।


6. इसके बाद धागों को बुनकर कपड़ा बनाया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी केमिकल के की जाती है, जिससे यह 100% बायोडिग्रेडेबल और इको-फ्रेंडली होता है।


दूध से कपड़े बनाने का इतिहास:


दूध से कपड़े बनाने का विचार जितना आधुनिक लगता है, इसकी जड़ें उतनी ही पुरानी हैं। 1930 में इटली में ऊन की कमी के कारण वैज्ञानिकों ने दूध की प्रोटीन से धागा बनाने का तरीका खोजा था, जिसे लानिटाल कहा गया। यह फैब्रिक युद्ध के दौरान लोकप्रिय हुआ, लेकिन बाद में गायब हो गया। अब, लगभग 90 साल बाद, यह तकनीक फिर से फैशन की दुनिया में वापसी कर रही है।


दूध से बने कपड़ों की विशेषताएँ:


रेशम से तीन गुना ज्यादा मुलायम, एंटी-बैक्टीरियल, थर्मल-रेग्युलेटेड और एलर्जी-फ्री।