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तंजु चंद्रा की फिल्म 'सुर': संगीत और मानवीय संवेदनाओं का अनूठा संगम

तंजु चंद्रा की फिल्म 'सुर' एक संवेदनशील कहानी है जो पुरुष अहंकार के प्रभाव को दर्शाती है, जो महिलाओं की प्रतिभा को रोकता है। लकी अली और गौरी कर्णिक की अदाकारी इस फिल्म को विशेष बनाती है। फिल्म में संगीत और मानवीय संवेदनाओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है। तंजु चंद्रा ने इस फिल्म के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है।
 

फिल्म का सारांश

तंजु चंद्रा की 'सुर' एक ऐसी फिल्म है जो पुरुष अहंकार के प्रभाव को दर्शाती है, जो महिलाओं की प्रतिभा को रोकता है। यह फिल्म भारतीय शास्त्रीय संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा पर एक संवेदनशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।


कहानी में, सुपर-म्यूजिशियन विक्रमादित्य (लकी अली) गोवा में एक अनछुई प्रतिभा, टीना मैरी (गौरी कर्णिक) को खोजता है। विक्रमादित्य की भूमिका में लकी अली ने अपने संगीत कौशल और भावनात्मक गहराई के साथ एक अद्वितीय प्रदर्शन दिया है।


फिल्म में टीना की बहन (दिव्या दत्ता) की मदद से टीना को संगीत की दुनिया में स्थान मिलता है। तंजु चंद्रा ने इस फिल्म में एक जटिल विषय को सरलता से प्रस्तुत किया है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।


हालांकि फिल्म में कुछ कमियां हैं, लेकिन इसकी पटकथा हाल के समय की बेहतरीन में से एक मानी जा सकती है। लकी अली और गौरी कर्णिक की अदाकारी प्रशंसा के योग्य है।


फिल्म का संगीत, विशेष रूप से एम.एम. कीरावानी द्वारा रचित, कहानी की गहराई को और बढ़ाता है। 'सुर' एक ऐसी फिल्म है जिसे उसके भावनात्मक क्षणों और संगीत के लिए देखना चाहिए।


तंजु चंद्रा का दृष्टिकोण

तंजु चंद्रा ने इस फिल्म के बारे में कहा, 'सुर मेरे दिल के करीब है। यह मेरी पहली स्वतंत्र रूप से लिखी और निर्देशित फिल्म है।' उन्होंने लकी अली और गौरी कर्णिक के साथ काम करने के अनुभव को साझा किया, जिसमें लकी के साथ संवादों को याद रखने में कठिनाई का जिक्र किया।


चंद्रा ने कहा कि फिल्म के निर्माण के दौरान उन्हें पूरी स्वतंत्रता मिली, जिससे उन्होंने अपनी रचनात्मकता को खुलकर व्यक्त किया। 'सुर' की सफलता ने उन्हें और भी प्रेरित किया।