जॉली एलएलबी 3: किसान की कहानी और मुक्तिबोध की छवि
जॉली एलएलबी 3 ने दर्शकों को किया प्रभावित
जॉली एलएलबी 3 ने दर्शकों को किया प्रभावित
जॉली एलएलबी एक प्रतिष्ठित फ्रेंचाइजी है, और इसके तीसरे भाग के ट्रेलर ने दर्शकों में उत्सुकता जगाई थी। फिल्म देखने के बाद मेरी जिज्ञासा को संतोष मिला। ट्रेलर में कवि मुक्तिबोध की एक तस्वीर दिखाई गई थी, जिसने मेरे मन में कई सवाल उठाए। इस फिल्म में उनकी छवि का क्या महत्व है? निर्देशक सुभाष कपूर ने इसे क्यों शामिल किया? जब फिल्म एक कॉमेडी के रूप में प्रस्तुत की गई है, तो मुक्तिबोध का संदर्भ क्या है?
फिल्म में जज की भूमिका निभाने वाले सौरभ शुक्ला के अलावा, कुछ अन्य दृश्य भी गंभीरता को बढ़ाते हैं। जैसे कि सीमा बिस्वास अपने दिवंगत पति की प्रतिमा के पैरों से लिपटी हुई दिखाई देती हैं, जो कमजोर और ताकतवर के बीच की लड़ाई को दर्शाती है। फिल्म में किसान और उद्योगपति के बीच की बहस भी महत्वपूर्ण है। मुक्तिबोध की कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ भी याद आती हैं, जैसे 'अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे'। यह फिल्म एक राजनीतिक संदेश के साथ दर्शकों के सामने आती है।
अंधेरे के खिलाफ उजाले की मुनादी
मुक्तिबोध को हिंदी साहित्य में यथार्थवादी कवि माना जाता है। उन्होंने अपने समय में कई महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए, जैसे 'चांद का मुंह टेढ़ा है'। यह उनके विचारों की गहराई को दर्शाता है। उनकी रचनाएँ अंधेरे के खिलाफ उजाले की मुनादी करती हैं। जॉली एलएलबी 3 में भी यह संदेश स्पष्ट है। फिल्म में जज सौरभ शुक्ला 'पेपर' और 'स्पिरिट' की बात करते हैं, यह दर्शाते हुए कि न्याय तभी संभव है जब दोनों का संतुलन हो।
यदि 'स्पिरिट' पहले दिखाई गई होती, तो फिल्म के कथानक में किसान राजा राम सोलंकी की ज़मीन नहीं हड़पी जाती। किसान की कहानी में हार और संघर्ष की गहराई है, जो दर्शकों को प्रभावित करती है।
फिल्म में दिखाई गई कवि मुक्तिबोध की तस्वीर
कतरनों के कोलाज में झांकते मुक्तिबोध
फिल्म में किसान कुछ पन्ने पलटता है, और स्क्रीन पर कवि मुक्तिबोध की छवि उभरती है। उनकी रचनाएँ समय के साथ और भी महत्वपूर्ण होती गई हैं। 2025 में, जब मुक्तिबोध की छवि मुख्यधारा के सिनेमा में दिखाई देती है, तो यह दर्शाता है कि उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।
फिल्म में सुनाई देने वाली पंक्तियाँ:
छप्पर टपकता रहा मेरा फिर भी
मैंने बारिश की दुआ की
मेरे दादा को परदादा से
पिता को दादा से
और मुझे पिता से जो विरासत मिली
वही सौंपना चाहता था मैं अपने बेटे को
देना चाहता था थोड़ी-सी ज़मीन
और एक मुट्ठी बीज कि
सबकी भूख मिटाई जा सके
इसलिए मैंने यकीन किया
उनकी हर एक बात पर
भाषण में कहे जज्बात पर
मैं मुग्ध होकर देखता रहा
आसमान की तरफ उठे उनके सर
और उन्होंने मेरे पैरों के नीचे से जमीन खींच ली
मुझे अन्नदाता होने का अभिमान था
यही अपराध था मेरा कि
मैं एक किसान था।
‘हमारी जमीन, हमारी मर्जी’
फिल्म में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कविता किसकी है, लेकिन मुक्तिबोध की उपस्थिति हर जगह महसूस होती है। फिल्म की कहानी 2011 में उत्तर प्रदेश के भट्टा पारसौल गांव की घटना से प्रेरित है, जिसे राजस्थान की पृष्ठभूमि में बदल दिया गया है। फिल्म का मुख्य संदेश है- 'हमारी जमीन, हमारी मर्जी'।
फिल्म में उद्योगपति हरिभाई खेतान गांव खाली कराने के लिए हर संभव प्रयास करता है। जब किसान राजा राम सोलंकी अपनी मर्जी के लिए खड़ा होता है, तो यह संघर्ष और भी गहरा हो जाता है। अक्षय कुमार और अरशद वारसी के पात्र भी इस संघर्ष में शामिल होते हैं।
ज़मीन बचाने की दास्तान
जॉली एलएलबी 3 ने बेबाक अभिव्यक्ति के खतरे उठाए हैं। फिल्म को कॉमेडी के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन यह वास्तव में किसान की कठिनाइयों की कहानी है। सीमा बिस्वास का प्रदर्शन दर्शकों को भावुक कर देता है।
पिक्चर की पॉलिटिक्स
फिल्म में वर्तमान की समस्याओं को उठाया गया है। इसमें सभी पक्षों के तर्क प्रस्तुत किए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि किसान की मर्जी और अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। फिल्म कई सवाल उठाती है, जैसे कि स्कूलों में कृषि शिक्षा क्यों नहीं दी जाती।