कांतारा: देसी सिनेमा का पैन इंडिया जलवा
कांतारा की लोकप्रियता का रहस्य
कांतारा क्यों हुई पॉपुलर?
कन्नड़ अभिनेता ऋषभ शेट्टी की फिल्म 'कांतारा: ए लिजेंड चैप्टर-1' ने बॉक्स ऑफिस पर एक नया मापदंड स्थापित किया है। इसकी कहानी, किरदार और कमाई ने दर्शकों के बीच नई चर्चाएँ शुरू कर दी हैं। जब कांतारा का पहला भाग रिलीज हुआ था, तब भी इस फिल्म के विषय पर चर्चा हुई थी। इसकी कहानी केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि पूरी तरह से आंचलिक है। कर्नाटक के लोग भी इसमें दर्शाए गए रीति-रिवाजों और मिथकों से पूरी तरह परिचित नहीं हैं। इसलिए, यह फिल्म एक आंचलिक फिल्म होते हुए भी पैन इंडिया स्तर पर लोकप्रिय हो गई है। यह चर्चा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जो दर्शकों को आकर्षित करता है।
कांतारा का मिथक और परंपरा
कांतारा की कहानी, पात्र, सेटिंग, और ऐतिहासिक संदर्भ ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया है। ऋषभ शेट्टी ने न केवल लेखन और निर्देशन किया है, बल्कि अभिनय में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। राम गोपाल वर्मा जैसे दिग्गज भी उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। फिल्म में जंगल और अंधकार के बीच जीवन की लड़ाई को हजारों साल पुराने मिथकों से जोड़कर प्रस्तुत करना एक चुनौती थी, जिसे शेट्टी ने सफलतापूर्वक निभाया है।
भारतीय सिनेमा में देसीपन का महत्व
कांतारा ने मिथक का नया ट्रेंड सेट किया
कांतारा ने एक मानक स्थापित किया है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब भारतीय सिनेमा ने क्षेत्रीय और आंचलिक लोक कथाओं को दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया है। दक्षिण भारतीय सिनेमा में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। अल्लू अर्जुन की 'पुष्पा' भी इसी देसीपन की पहचान है।
फिल्मों में देसीपन का मेलोड्रामा
हाल के वर्षों में कई क्षेत्रीय फिल्मों ने अपनी संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को दर्शाने में सफलता प्राप्त की है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी जब देसीपन को शामिल किया गया, तो दर्शकों ने उसे पसंद किया। हाल ही में 'स्त्री 2' और 'भूल भुलैया 3' में भी इसी देसीपन का समावेश था।
कांतारा में परंपरा की जीत
कांतारा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी ऐतिहासिक और भौगोलिक प्रस्तुति है। ऋषभ शेट्टी ने हजारों साल पुरानी परंपरा को जिस तरीके से पेश किया है, वह इसे अद्वितीय बनाता है। फिल्म में पुरानी परंपराओं को जीतते हुए दिखाया गया है, जो दर्शकों को एक नई सोच प्रदान करता है।
मुख्यधारा की हिंदी फिल्मों में देसीपन
हिंदी सिनेमा में भी क्षेत्रीयता का महत्व रहा है। 'मदर इंडिया' से लेकर 'डॉन' तक, कई फिल्में देसीपन को दर्शाती हैं। हालांकि, विदेशी लोकेशनों और सेटों का भी उपयोग किया गया है, लेकिन संवेदनाओं के साथ बनाए गए देसी सिनेमा ने हमेशा बॉक्स ऑफिस पर सफलता प्राप्त की है।
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