कांतारा चैप्टर 1: ऋषभ शेट्टी की अद्भुत फिल्म जो दिल को छू लेगी
कांतारा चैप्टर 1 का रिव्यू
कांतारा चैप्टर 1 फिल्म का रिव्यू
कांतारा चैप्टर 1 की समीक्षा: ऋषभ शेट्टी की ‘कांतारा: चैप्टर 1’ अब सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है। कुछ फिल्में हमें मनोरंजन देती हैं, कुछ हमें सोचने पर मजबूर करती हैं, और कुछ ऐसी होती हैं जो हमें ताली बजाने पर मजबूर कर देती हैं। जब एक फिल्म में ये सभी तत्व होते हैं, तो उसे मास्टरपीस कहा जाता है, और ऋषभ शेट्टी की यह फिल्म उसी श्रेणी में आती है। जब इस प्रीक्वल का ट्रेलर पहली बार आया, तो थोड़ी निराशा हुई थी, लेकिन फिल्म देखने के बाद यह डर गलत साबित हुआ।
तीन साल पहले, ऋषभ शेट्टी ने भारत की एक लोककथा को पेश करने की हिम्मत दिखाई थी, जिस पर महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के लोग विश्वास करते आए हैं। इस फिल्म के प्रीक्वल में क्या खास है, यह जानने के लिए आपको पूरा रिव्यू पढ़ना होगा।
कहानी का सारांश
फिल्म की शुरुआत कदंब सल्तनत के एक क्रूर बादशाह से होती है, जो हर चीज पर अपना अधिकार जमाना चाहता है। उसकी लालच उसे एक बुजुर्ग मछुआरे की ओर खींच लाती है, जिसके पास अनोखी चीजें होती हैं। राजा उन चीजों को देखकर लालच में आ जाता है और कांतारा की पवित्र भूमि पर अपनी बुरी नजर डालता है।
कई सालों बाद, कहानी भंगरा रियासत में पहुंचती है, जहां राजा का बेटा विजयेंद्र बुजुर्ग हो चुका है। कांतारा के लोग अपनी समस्याओं के साथ भंगरा की दरबार में आते हैं, जिससे एक महाभारत छिड़ जाती है। यह संघर्ष केवल इंसानों का नहीं, बल्कि आस्था और अधिकार का है, जिसका परिणाम रोंगटे खड़े कर देने वाला है। इस ड्रामे को देखने के लिए आपको थिएटर में जाकर ऋषभ शेट्टी की कांतारा चैप्टर 1 देखनी होगी।
फिल्म की विशेषताएँ
यदि आपने 2022 की कांतारा देखी है, तो यह प्रीक्वल उससे भी बेहतर है। कांतारा के गांव में भगवान के साथ-साथ उनके गणों की भी पूजा की जाती है। इस फिल्म में उनकी कहानी को दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है। फिल्म की कहानी इतनी आकर्षक है कि आप बिना पलक झपकाए इसे देखेंगे।
फिल्म के हर दृश्य को बारीकी से तैयार किया गया है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। यह फिल्म न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि समाज में हो रहे शोषण पर भी प्रकाश डालती है। ऋषभ शेट्टी का बागी किरदार कहानी में एक नई दिशा लाता है। पहले हाफ में फिल्म में ऊर्जा है, जबकि दूसरे हाफ में कई ट्विस्ट हैं। यह साबित करता है कि ऋषभ ने इस फिल्म को पूरी मेहनत से बनाया है।
निर्देशन और तकनीकी पहलू
ऋषभ शेट्टी ने इस फिल्म में न केवल अभिनय किया है, बल्कि निर्देशन में भी कमाल किया है। उन्होंने आदिवासी समुदायों के संघर्ष को दर्शाने की कोशिश की है। फिल्म में तकनीकी दृष्टि से सिनेमैटोग्राफी और संगीत शानदार हैं। हालांकि, कुछ ग्राफिक्स दूसरे हाफ में कमजोर लगते हैं, लेकिन यह फिल्म के अनुभव को प्रभावित नहीं करता।
अभिनय
ऋषभ शेट्टी इस फिल्म की आत्मा हैं, जबकि रुक्मिणी वसंत (कनकवथी) इसकी जान हैं। रुक्मिणी ने अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। जयराम और गुलशन देवैया ने भी अपने किरदारों में जान डाल दी है। ऋषभ शेट्टी के क्लाइमेक्स और गुलिगा के दृश्यों में उनकी अदाकारी अद्भुत है।
क्या देखें या न देखें?
यदि आप सोचते हैं कि कांतारा में सब कुछ देख लिया है, तो यह प्रीक्वल आपको दिखाता है कि जड़ों में कितनी ताकत होती है। यह फिल्म केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि एक सिनेमैटिक अनुभव है जो लंबे समय तक याद रहेगा। तो अपनी सीट बेल्ट बांध लीजिए और कांतारा की दुनिया में खो जाइए। हमारी तरफ से इस फिल्म को 4 स्टार्स मिलते हैं।