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इस्लाम में शव के पोस्टमार्टम पर विवाद: जानें क्या है सच्चाई

इस लेख में हम जानेंगे कि भारतीय मुसलमान शव के पोस्टमार्टम से क्यों बचते हैं। क्या यह इस्लाम में मना है या इसके पीछे अन्य कारण हैं? उत्तराखंड के मंत्री मुफ्ती शमून कासमी और अन्य विशेषज्ञों के विचारों के माध्यम से इस विषय पर गहराई से चर्चा की गई है। जानें इस्लाम में शव के प्रति क्या निर्देश हैं और क्यों यह मुद्दा विवाद का कारण बनता है।
 

पोस्टमार्टम और इस्लाम का संबंध

पोस्टमार्टम और इस्लाम

भारत में संदिग्ध मौतों, दुर्घटनाओं और हत्या के मामलों में शव का पोस्टमार्टम अनिवार्य होता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं, जैसे मौत का सही कारण जानना, हत्या या आत्महत्या का पता लगाना, और बीमा क्लेम पास कराना। हालांकि, मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शव का पोस्टमार्टम कराने से बचता है, जिससे कई बार प्रशासनिक विवाद भी उत्पन्न होते हैं।

भारत में मुसलमानों के व्यक्तिगत मामलों को शरीयत के अनुसार सुलझाने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना की गई है, लेकिन पोस्टमार्टम इस प्रक्रिया में शामिल नहीं है। यहां तक कि सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में भी संदिग्ध मौतों पर पोस्टमार्टम किया जाता है। ऐसे में भारतीय मुसलमानों का इससे परहेज क्यों है?

उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री मुफ्ती शमून कासमी का कहना है कि शरीयत को दुनियावी कानूनों के सामने नहीं रखा जा सकता। उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम को इस्लाम में मना समझना गलत है। संदिग्ध मौतों में पोस्टमार्टम के बिना सही कारण जानना मुश्किल होता है, और बिना पोस्टमार्टम के मेडिकल क्लेम या सरकारी मुआवजा नहीं मिल पाता। इसलिए जो लोग पोस्टमार्टम को गलत मानते हैं, उन्हें इस्लामी कानून की सही जानकारी नहीं है।

इस्लाम में शव का सम्मान

इस्लाम में जीवन जीने के तरीके के साथ-साथ मृत शरीर के प्रति भी सम्मान का निर्देश दिया गया है। जमीयत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव डॉ. मोहम्मद रज़िउल इस्लाम नदवी बताते हैं कि मृत शरीर को भी जीते-जी इंसान की तरह सम्मान देने का आदेश है। पोस्टमार्टम में शरीर को चीरा जाता है, जिससे कई लोगों को लगता है कि उनके प्रियजन के शव की बेइज्जती होगी।

डॉ मोहम्मद रज़िउल इस्लाम नदवी और मुफ्ती शमून कासमी

नदवी ने आगे कहा कि इस्लाम पोस्टमार्टम को मना नहीं करता, क्योंकि यह संदिग्ध मौतों की जांच के लिए आवश्यक है। कई प्रमुख मुस्लिम संस्थानों ने कानूनी आवश्यकताओं, संक्रामक बीमारियों के संदेह और मेडिकल छात्रों की शिक्षा के लिए पोस्टमार्टम को उचित ठहराया है, बशर्ते कि इसमें मरीज की अनुमति हो। वहीं, सामान्य मौतों में पोस्टमार्टम को गलत माना गया है।

इस्लाम में शव के प्रति निर्देश

कुरान और हदीस में मृतक को जल्दी दफनाने की सलाह दी गई है। पोस्टमार्टम में समय लगने से दफनाने में देरी होती है। मुसलमानों का मानना है कि जिस अवस्था में अल्लाह ने इंसान को पैदा किया और मृत्यु दी, उसी अवस्था में उसे दफनाया जाना चाहिए। शरीर को काटना या अंग निकालना इस विश्वास के खिलाफ माना जाता है।

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