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मोहन आगाशे बर्थडे स्पेशल : मेडिकल की पढ़ाई ने बनाया शानदार अभिनेता, किरदारों में डाली जान

मुंबई, 22 जुलाई (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा में ऐसे कलाकार काफी कम होते हैं, जो अभिनय की दुनिया के साथ-साथ मेडिकल के क्षेत्र में भी अपनी पहचान को कायम रख पाते हैं। मोहन आगाशे इन कलाकारों में से हैं, एक तरफ वह मनोचिकित्सक के तौर पर लोगों का इलाज करते हैं, वहीं दूसरी ओर फिल्मों में विलेन या ग्रे शेड्स वाले किरदार निभाकर दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। दोनों क्षेत्रों में उनकी मौजूदगी ही उन्हें बेहद खास बनाती है। मोहन आगाशे ने इन दोनों दुनिया को जिस सहजता से जोड़ा है, वह उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करता है। लेकिन क्या आपको पता है कि उनके मनोचिकित्सक बनने का फायदा उन्हें अभिनय में भी हुआ?
 

मुंबई, 22 जुलाई (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा में ऐसे कलाकार काफी कम होते हैं, जो अभिनय की दुनिया के साथ-साथ मेडिकल के क्षेत्र में भी अपनी पहचान को कायम रख पाते हैं। मोहन आगाशे इन कलाकारों में से हैं, एक तरफ वह मनोचिकित्सक के तौर पर लोगों का इलाज करते हैं, वहीं दूसरी ओर फिल्मों में विलेन या ग्रे शेड्स वाले किरदार निभाकर दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। दोनों क्षेत्रों में उनकी मौजूदगी ही उन्हें बेहद खास बनाती है। मोहन आगाशे ने इन दोनों दुनिया को जिस सहजता से जोड़ा है, वह उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करता है। लेकिन क्या आपको पता है कि उनके मनोचिकित्सक बनने का फायदा उन्हें अभिनय में भी हुआ?

मनोचिकित्सक का प्रशिक्षण उनके अभिनय में अलग ही गहराई लाता है। अभिनय में सिर्फ डायलॉग बोलना या हावभाव दिखाना नहीं होता, बल्कि किरदार की मानसिकता और भावनाओं को समझना भी होता है। आगाशे ने अपने मेडिकल करियर में पढ़ाई के दौरान जो सीखा कि लोग कैसे सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं, और अलग-अलग हालात में उनका व्यवहार कैसा होता है, ये सारी बातें उन्हें फिल्मी किरदार निभाने में मददगार साबित हुईं।

इन सभी मानसिक दशाओं की बारीक समझ ने उनके अभिनय को दमदार बना दिया।

मोहन आगाशे का जन्म 23 जुलाई 1947 को महाराष्ट्र के छोटे से कस्बे में हुआ था, और यहीं से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और उच्च शिक्षा के लिए पुणे आए। यहां उन्होंने बी.जे. मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। यही नहीं, यहीं से उन्होंने मनोचिकित्सा में पोस्टग्रेजुएट डिग्री ली। डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात रंगकर्मी उत्पल दत्त से हुई, जिसके बाद उनका झुकाव रंगमंच और अभिनय की ओर बढ़ गया।

उन्होंने मनोवैज्ञानिक शिक्षा और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई वर्षों तक काम किया। वह 'महाराष्ट्र मानसिक स्वास्थ्य संस्थान' के संस्थापक निदेशक बने और 1991 में पुणे में भी संस्थान की स्थापना की। 1993 में जब महाराष्ट्र में लातूर भूकंप आया, तो भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने उन्हें भूकंप से पीड़ित लोगों के मानसिक प्रभाव पर रिसर्च करने का प्रमुख कार्य सौंपा।

चिकित्सा के साथ-साथ मोहन आगाशे का अभिनय करियर भी लगातार बढ़ता गया। उन्होंने रंगमंच से शुरुआत की और फिर मराठी और हिंदी फिल्मों में अपनी गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने कई बंगाली, तमिल और मलयालम फिल्मों में भी काम किया। उनके अभिनय में गहराई और सच्चाई होती है, जिसका श्रेय वह अपनी मनोचिकित्सकीय सेवा को देते हैं। अप्रैल 1997 में वह पुणे में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के महानिदेशक बने, लेकिन साल 2002 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।

मराठी में वह 'सामना', 'निशांत', 'मंथन', 'दबी हुई आवाजें', 'सिंहासन', 'आक्रोश', 'समुद्री भेड़िये', 'सदगति', 'गांधी', 'मशाल', 'पार', और 'हंगामा बॉम्बे' जैसी कई फिल्मों में नजर आए। वहीं उन्होंने 'फेलुदा', 'नयन रहस्य', 'गोलापी मुक्तो रहस्य', और 'कट्ट कट्ट कद कद्दू' जैसी बंगाली फिल्मों में अभिनय किया।

मलयालम फिल्मों की बात करें तो उन्होंने 'पचुवुम अथबुथा विलक्कुम' और 'राजा और आयुक्त' फिल्मों में काम किया। वह तमिल फिल्म 'मणिथन' और 'वेजहम' का भी हिस्सा रहे।

हिंदी सिनेमा में उनका बोलबाला रहा। उन्होंने 'त्रिमूर्ति', 'रंग दे बसंती', 'गंगाजल', 'पाप', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'गुड़िया', 'असंभव', 'अब तक छप्पन 2', और 'आर्टिकल 370' जैसी दमदार फिल्में दी हैं।

कला और चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में मोहन आगाशे को कई पुरस्कार मिले। 1990 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1996 में उन्होंने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया और इसी साल उन्हें फिल्म 'त्रिमूर्ति' में निभाए गए खलनायक किरदार के लिए 'फिल्मफेयर बेस्ट विलेन अवॉर्ड' के लिए नामित किया गया। 2002 में जर्मनी सरकार ने उन्हें 'ऑर्डर ऑफ मेरिट' प्रदान किया और 2004 में उन्हें प्रतिष्ठित 'गोएथे पदक' भी मिला।

--आईएएनएस

पीके/जीकेटी