'सलाकार' के सीन का जिक्र कर फारुक कबीर ने बताया- 'तानाशाहों' में होती है कौन सी समानता
मुंबई, 10 अगस्त (आईएएनएस)। निर्देशक फारूक कबीर की हालिया रिलीज वेब सीरीज ‘सालाकार’ को दर्शकों से खूब सराहना मिल रही है। इस सीरीज के प्रमोशन में जुटे फारुक ने बताया कि सभी तानाशाहों में एक समान विशेषता होती है, जो उनकी पहचान बनती है।
‘सालाकार’ एक पीरियड जासूसी ड्रामा-थ्रिलर है, जो 1970 और 2025 के बीच दो समयरेखाओं में चलती है। यह एक भारतीय जासूस की कहानी है, जो पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम पर नजर रखता है।
सीरीज में अभिनेता मुकेश ऋषि पाकिस्तानी तानाशाह मोहम्मद जिया-उल-हक की भूमिका में हैं, मोहम्मद ने पाकिस्तान के परमाणु बम प्रोजेक्ट को तेजी दी थी।
समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में फारुक ने सीरीज के एक दृश्य का जिक्र किया, जिसमें जिया-उल-हक अपनी पुरानी मर्सिडीज कार में बैठे जनता को संबोधित करते नजर आते हैं। यह सीन हिटलर के एक वीडियो से मिलता-जुलता है, जिसमें वह अपनी मर्सिडीज में बैठकर नाजी काफिले के साथ नजर आता है।
इस पर फारुक ने कहा, “हिटलर, मुसोलिनी हों या जिया, सभी तानाशाहों में आत्ममुग्धता (नार्सिसिज्म) पाई जाती है। यह सदियों से तानाशाहों में पाया जाता रहा है। हिटलर, जिया के लिए एक संदर्भ बिंदु की तरह हैं, क्योंकि उनके कार्यों में समानता थी।”
जिया-उल-हक भारत की अधिकांश समस्याओं की वजह बने। जनरल अयूब खान के बाद वह दूसरे पाकिस्तानी तानाशाह थे। उन्होंने जुल्फिकार अली भट्टो के “भारत को हजार घावों से छलनी करने" की योजना में हिस्सा लिया, जो पाकिस्तान के अपने हित के लिए भारत के खिलाफ एक युद्ध था। बाद में, जिया ने भट्टो को एक मामले में फंसाकर, अपने चुने हुए जजों के जरिए फांसी की सजा दिलवाई।
जिया के राजनीतिक फैसलों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में आज के भू-राजनीतिक तनावों को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने सन 1979 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद अफगान मुजाहिदीन की मदद की और अमेरिका व चीन के साथ संबंध मजबूत किए। साथ ही जिया ने औद्योगिकीकरण और नियमन-मुक्ति को बढ़ावा देकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बेहतर किया।
‘सालाकार’ न केवल एक रोमांचक जासूसी कहानी है, बल्कि यह इतिहास के पन्नों को भी उजागर करती है।
--आईएएनएस
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