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'चतुर्भाषा तारे' बी. सरोजा देवी का निधन, 87 की उम्र में ली अंतिम सांस

बेंगलुरु, 14 जुलाई (आईएएनएस)। तमिल सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री बी. सरोजा देवी का निधन हो गया है। इस खबर से साउथ इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। 87 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वह उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रही थीं। उनका जाना एक युग का अंत है। उन्होंने अपने अभिनय से कई पीढ़ियों के दिलों को छुआ और सिनेमा को एक नई पहचान दी। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक प्रेरणा थीं, जिन्होंने चार भाषाओं- तमिल , कन्नड़ , तेलुगु और हिंदी फिल्मों में अभिनय कर एक मिसाल कायम की।
 

बेंगलुरु, 14 जुलाई (आईएएनएस)। तमिल सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री बी. सरोजा देवी का निधन हो गया है। इस खबर से साउथ इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। 87 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वह उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रही थीं। उनका जाना एक युग का अंत है। उन्होंने अपने अभिनय से कई पीढ़ियों के दिलों को छुआ और सिनेमा को एक नई पहचान दी। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक प्रेरणा थीं, जिन्होंने चार भाषाओं- तमिल , कन्नड़ , तेलुगु और हिंदी फिल्मों में अभिनय कर एक मिसाल कायम की।

चार भाषाओं में उनकी लोकप्रियता के चलते 1962 में उन्हें 'चतुर्भाषा तारे' के रूप में सम्मानित किया गया।

सरोजा देवी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए 'अभिनया सरस्वती' कहा जाता था। उनकी पहली बड़ी सफलता 1955 की कन्नड़ फिल्म 'महाकवि कालिदास' रही। इसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई थी, उस वक्त उनकी उम्र महज 17 साल थी। इस फिल्म ने बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड जीता। इसके बाद, उन्होंने तमिल में 'थंगमलाई रागासियम' (1957) जैसी फिल्मों में नृत्य और अभिनय से अपनी पहचान बनाई। एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के साथ उनकी जोड़ी पसंद की गई। दोनों ने मिलकर 26 हिट फिल्में दीं, जिसमें 'नादोडी मन्नन' (1958) ने उन्हें तमिलनाडु की टॉप अभिनेत्रियों में स्थापित किया।

हिंदी फिल्मों में भी उन्होंने दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार, और शम्मी कपूर जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया। ससुराल (1960), ओपेरा हाउस (1961), परीक्षा , हांगकांग (1962) और प्यार किया तो डरना क्या (1963) जैसी कई फिल्मों में सरोजा देवी ने अभिनय किया।

कन्नड़ सिनेमा में उनकी उल्लेखनीय फिल्में 'चिंतामणि', 'स्कूल मास्टर', और 'किट्टूरू रानी चेन्नम्मा' रहीं। तेलुगु फिल्मों में उन्होंने एनटी रामाराव और अक्किनेनी नागेश्वर राव के साथ भी सफल फिल्में कीं। 1960 के दशक में वह दक्षिण भारतीय फिल्मों की एक फैशन आइकन बन गईं। 1967 में शादी के बाद उनका करियर धीरे-धीरे कन्नड़ फिल्मों की ओर केंद्रित हो गया, लेकिन उन्होंने तमिल और तेलुगु में भी सक्रिय रूप से काम जारी रखा। उन्होंने 161 मुख्य भूमिकाएं निभाईं, जिनमें रोमांटिक से लेकर सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्में शामिल थीं।

1985 में पति के निधन के बाद उन्होंने कुछ समय फिल्मों से ब्रेक लिया, फिर अभिनय में लौट आईं लेकिन सहायक भूमिका के तौर पर। उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार निर्णायक मंडल की अध्यक्षता भी की और कर्नाटक फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष रहीं। सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हुए उन्होंने कई धर्मार्थ अभियानों का नेतृत्व किया। 2019 में उनकी फिल्म 'नतासार्वभौमा' रिलीज हुई।

सरोजा देवी को सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1969 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें तमिलनाडु का कलाईममणि पुरस्कार और बैंगलोर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली।

--आईएएनएस

पीके/केआर