120 बहादुर: एक अनोखी वॉर फिल्म जो बलिदान की सच्चाई को उजागर करती है
120 बहादुर की समीक्षा
फिल्म '120 बहादुर' ने यह साबित किया है कि एक बेहतरीन वॉर फिल्म के लिए 'शोर' की आवश्यकता नहीं, बल्कि 'सटीक कहानी' की जरूरत होती है।Image Credit source: सोशल मीडिया
120 बहादुर हिंदी समीक्षा: क्या आप भी उन दर्शकों में से हैं जो मानते हैं कि हिंदी सिनेमा की वॉर फिल्में हमेशा जोरदार बैकग्राउंड म्यूजिक और मेलोड्रामा से भरी होती हैं? यदि हां, तो '120 बहादुर' आपको इस धारणा को बदलने के लिए तैयार है। फरहान अख्तर ने मेजर शैतान सिंह भाटी की भूमिका निभाकर एक ऐसी कहानी को जीवंत किया है, जो 'रेजांग ला' की बर्फीली हवाओं में दबी हुई थी। यह फिल्म न केवल देशभक्ति का जज्बा जगाती है, बल्कि एक खामोश और दिल दहला देने वाले बलिदान की गवाही भी देती है। निर्देशक रजनीश घई ने इस शौर्य गाथा को 'पैट्रियोटिक गिमिक' से दूर रखकर दर्शकों के सामने पेश किया है।
कहानी का सारांश
1962 में, जब चीनी सेना ने लद्दाख की ओर बढ़ना शुरू किया, मेजर शैतान सिंह भाटी (फरहान अख्तर) और उनके 120 सैनिकों को चशूल सेक्टर के रेज़ांग ला दर्रे की रक्षा का जिम्मा सौंपा गया। चीन का लक्ष्य चशूल पर कब्जा कर लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बढ़त हासिल करना था। 17 नवंबर को जब शैतान सिंह ने 3000 से अधिक चीनी सैनिकों को अपनी ओर बढ़ते देखा, तो उन्हें पीछे हटने का आदेश मिला। लेकिन मेजर ने अपने 120 बहादुर जवानों के साथ अंतिम सांस तक लड़ने का निर्णय लिया। इस अद्वितीय युद्ध की कहानी जानने के लिए आपको ‘120 बहादुर’ देखनी होगी।
फिल्म की विशेषताएँ
‘120 बहादुर’ की एक खासियत यह है कि इसकी कहानी किसी लंबे फ्लैशबैक में नहीं उलझती। दर्शक जानते हैं कि ये सैनिक एक ऐसे युद्ध में जा रहे हैं, जहाँ जीत की कोई संभावना नहीं है, फिर भी उनका साहस और संकल्प दर्शकों को प्रभावित करता है। हिंदी वॉर फिल्मों की एक बड़ी समस्या उनका अत्यधिक शोर होता है, लेकिन ‘120 बहादुर’ इस मामले में सफल होती है। फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा है, लेकिन इंटरवल के बाद इसकी गति तेज हो जाती है।
निर्देशन और लेखन
निर्देशक रजनीश घई और उनकी टीम ने इस फिल्म की कहानी पर गहराई से काम किया है। उन्होंने शैतान सिंह के किरदार को एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अपने फैसलों और रणनीतियों के कारण महान बनता है। फिल्म में कहीं भी डायलॉग से उन्हें महान बनाने की कोशिश नहीं की गई है। कुछ खामोश दृश्य भी दर्शकों को गहराई से प्रभावित करते हैं, जो हॉलीवुड की वॉर फिल्मों की याद दिलाते हैं।
अभिनय
फरहान अख्तर ने मेजर शैतान सिंह का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है। विवान भटेना ने भी अपने किरदार में शानदार प्रदर्शन किया है। अन्य कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। उनकी केमिस्ट्री दर्शकों को प्रभावित करती है। राशि खन्ना का प्रदर्शन भी ठीक है।
तकनीकी पहलू
फिल्म के तकनीकी पक्ष पर बारीकी से ध्यान दिया गया है। एक्शन दृश्य यथार्थवादी हैं और कहीं भी अतिरंजित नहीं लगते। सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है, जो रेजांग ला की लड़ाई के दौरान सैनिकों की बेबसी को दर्शाती है। मेकअप टीम ने भी बेहतरीन काम किया है।
देखें या न देखें
‘120 बहादुर’ एक सच्ची और गंभीर वॉर ड्रामा है। यदि आप ऐसे बलिदान की कहानी देखना चाहते हैं जो जिंगोइज़्म से दूर हो, तो यह फिल्म आपके लिए है। फिल्म का दूसरा भाग भारतीय सैन्य इतिहास के असाधारण धैर्य को दर्शाता है। हालांकि, यदि आप मेलोड्रामैटिक देशभक्ति की फिल्में पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है। कुल मिलाकर, ‘120 बहादुर’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि उन 120 वीरों को श्रद्धांजलि है।