रूस और चीन का डॉलर मुक्त व्यापार: क्या अमेरिकी मुद्रा की बादशाहत खतरे में है?
रूस और चीन का नया व्यापारिक युग
दुनिया की आर्थिक संरचना में एक महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है। रूस और चीन अब अपने अधिकांश व्यापार को अमेरिकी डॉलर के बिना, केवल रुबल और युआन में कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 99.1% व्यापार अब स्थानीय मुद्राओं में हो रहा है। इसका मुख्य कारण रूस पर लगे युद्ध संबंधी प्रतिबंध और वैश्विक भुगतान प्रणाली का बंद होना है। दोनों देशों ने मिलकर एक नया समानांतर भुगतान नेटवर्क स्थापित किया है, जिसने डॉलर की शक्ति को कमजोर कर दिया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या डॉलर का वर्चस्व वास्तव में खतरे में है?
रूस और चीन ने मिलकर एक ऐसा भुगतान प्रणाली विकसित किया है, जिससे उनका 99% व्यापार अब डॉलर के बिना हो रहा है। युद्ध के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों ने डॉलर आधारित वैश्विक भुगतान नेटवर्क को बाधित कर दिया था। ऐसे में, दोनों देशों ने अपनी मुद्रा में व्यापार करने का निर्णय लिया।
क्या कारण है कि रूस और चीन ने डॉलर से दूरी बनाई? युद्ध और प्रतिबंधों के चलते रूस को डॉलर प्रणाली से लगभग बाहर कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, SWIFT भुगतान प्रणाली बंद हो गई, और कई बैंकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। ऐसे में, रूस के पास कोई विकल्प नहीं था, और चीन ने आगे बढ़कर दोनों देशों के बीच व्यापार को अपनी मुद्रा में करने का निर्णय लिया।
अब कितना व्यापार डॉलर के बाहर हो चुका है? आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 99.1% व्यापार अब डॉलर में नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्राओं में हो रहा है। इसका मतलब है कि डॉलर की भूमिका लगभग समाप्त हो चुकी है।
यह बदलाव इतना महत्वपूर्ण क्यों है? अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अधिकांश हिस्सा दशकों से डॉलर पर निर्भर था। यदि बड़े देश डॉलर का उपयोग छोड़ते हैं, तो अमेरिका की आर्थिक शक्ति में कमी आएगी। इससे डॉलर की मांग घटेगी और अमेरिका की राजनीतिक स्थिति कमजोर होगी। रूस और चीन का 99% व्यापार डॉलर के बाहर जाना अमेरिका के लिए एक रणनीतिक झटका है।
रूस और चीन ने नया भुगतान प्रणाली क्यों बनाया? प्रतिबंधों के कारण रूस को डॉलर भुगतान का कोई विकल्प नहीं मिला, इसलिए दोनों देशों ने मिलकर एक समानांतर बैंकिंग और भुगतान नेटवर्क स्थापित किया। इसमें लेन-देन डॉलर में नहीं होता और यह पूरी तरह से उनके नियंत्रण में है। इससे रूस का व्यापार रुकने के बजाय और बढ़ गया है।
क्या अब चीन रूस से तेल भी डॉलर में नहीं खरीदता? हां, अब चीन रूस से तेल का भुगतान डॉलर में नहीं, बल्कि युआन में करता है। यह एक बड़ा बदलाव है क्योंकि तेल व्यापार हमेशा से डॉलर पर निर्भर रहा है।
2025 में रूस-चीन के व्यापार में 9% की गिरावट क्यों आई? इसके पीछे तीन कारण हैं—चीन में मांग में कमी, रूस की अर्थव्यवस्था पर दबाव, और प्रतिबंधों के कारण शिपिंग महंगी हो गई है। फिर भी, दोनों देश डॉलर-मुक्त व्यापार जारी रखे हुए हैं।
क्या चीन अपनी मुद्रा युआन को वैश्विक स्तर पर स्थापित करना चाहता है? हां, यह चीन की एक बड़ी रणनीति है। चीन अब युआन में तेल खरीदता है और रूस कुछ खनिज रुबल में बेचता है। कई एशियाई और अफ्रीकी देशों के साथ भी चीन युआन में व्यापार कर रहा है। इसका मतलब है कि चीन युआन को वैश्विक व्यापार मुद्रा बनाना चाहता है।
इसका आम लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? डॉलर की ताकत थोड़ी कमजोर होगी, तेल बाजार की राजनीति में बदलाव आएगा, और दुनिया में मुद्रा का संतुलन बदल सकता है। भारत जैसे देशों को नए व्यापार विकल्प मिलेंगे।
क्या वास्तव में डॉलर की बादशाहत खतरे में है? फिलहाल तो नहीं, लेकिन रूस और चीन का यह कदम अमेरिकी दबदबे को चुनौती देने वाला है।
चीन का बड़ा खेल: “युआन फॉर ऑयल” और नई वैश्विक चाल- चीन अब युआन को दुनिया की व्यापार मुद्रा बनाने के मिशन पर है। रूस को तेल का भुगतान युआन में हो रहा है। अफ्रीका और एशिया के कई देशों से व्यापार युआन में हो रहा है। कुछ खनिजों के कॉन्ट्रैक्ट रूस से रुबल में हैं। यह खेल अब केवल व्यापार का नहीं, बल्कि वैश्विक मुद्रा शक्ति का है। भारत भी चीन-रूस की इस चाल पर नजर रखे हुए है, क्योंकि इसका असर दुनिया के तेल, व्यापार और मुद्रा बाजार पर पड़ेगा.