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भारत का राजकोषीय घाटा: आर्थिक दबाव और बढ़ते खर्च की कहानी

भारत का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनों में ₹5.98 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, जो सरकार के निर्धारित लक्ष्य का 38.1% है। अमेरिकी टैरिफ नीति के कारण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है। टैक्स कलेक्शन में कमी और पूंजीगत व्यय में वृद्धि ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। जानें आगे की संभावनाएँ और सरकार की आर्थिक रणनीतियाँ।
 

भारत का राजकोषीय घाटा


भारत की आर्थिक स्थिति पर इस बार भी खर्च का भारी दबाव देखने को मिल रहा है। वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) में देश का राजकोषीय घाटा ₹5.98 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा सरकार द्वारा निर्धारित वार्षिक लक्ष्य का 38.1% है।


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिसी’ के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है। पिछले वर्ष इसी समय यह घाटा लगभग ₹4.35 लाख करोड़ था, जिससे इस बार घाटा करीब ₹1.63 लाख करोड़ अधिक हो गया है।


टैक्स कलेक्शन में गिरावट से आई परेशानी

सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता टैक्स से होने वाली आय में कमी है। इस वर्ष सरकार का नेट टैक्स कलेक्शन ₹8.1 लाख करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष के ₹8.7 लाख करोड़ से कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार ने इस साल ₹12 लाख तक की आमदनी वालों को आयकर छूट दी है। इससे आम जनता को राहत मिली, लेकिन सरकार की आय में कमी आई।


हालांकि, गैर-कर राजस्व, जैसे कि डिविडेंड और ब्याज, में थोड़ी वृद्धि हुई है। यह पिछले साल के ₹3.3 लाख करोड़ से बढ़कर इस बार ₹4.4 लाख करोड़ हो गया है। इस वृद्धि के चलते सरकार की कुल आय ₹12.8 लाख करोड़ तक पहुंची, जो पिछले साल के ₹12.2 लाख करोड़ से बेहतर है।


खर्च में जबरदस्त उछाल

सरकार ने पूंजीगत व्यय, जैसे सड़क, रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर पर इस बार काफी खर्च किया है। अप्रैल से अगस्त के बीच इस मद में ₹4.3 लाख करोड़ खर्च किए गए, जबकि पिछले साल यह खर्च केवल ₹3 लाख करोड़ था। यह इस साल के पूंजीगत व्यय लक्ष्य का 38.5% है।


घाटा बढ़ा तो आगे क्या?

सरकार ने पूरे वर्ष के लिए ₹15.7 लाख करोड़ का घाटा निर्धारित किया है, जो देश की GDP का 4.4% है। यह पिछले साल के ₹16.9 लाख करोड़ से थोड़ा कम है, लेकिन अप्रैल-अगस्त के आंकड़ों को देखते हुए आगे की राह चुनौतीपूर्ण हो सकती है।