भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में लक्ष्मण रेखाओं का महत्व
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों में लक्ष्मण रेखाओं के महत्व पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ व्यापारिक समझ बनाना आवश्यक है, लेकिन यह भारत की मूल हितों का सम्मान करते हुए होना चाहिए। जयशंकर ने व्यापार वार्ता में कुछ मुद्दों का उल्लेख किया और कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है। जानें इस संबंध में और क्या कहा गया है और कैसे भारत अब अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे झुकने वाला नहीं है।
Oct 6, 2025, 12:28 IST
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौतों पर चर्चा
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि व्यापार समझौतों में नई दिल्ली की 'लक्ष्मण रेखाओं' का सम्मान होना चाहिए। जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा कि दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दे हैं, जिनमें से कई प्रस्तावित व्यापार समझौतों के अंतिम रूप न दिए जाने से संबंधित हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, इसलिए व्यापारिक समझौता बनाना आवश्यक है।
जयशंकर ने कहा, “हमारे सामने अमेरिका के साथ कुछ मुद्दे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हम व्यापार वार्ता में ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं, जिसके कारण भारत पर कुछ शुल्क लगाया जा रहा है।” उन्होंने यह भी बताया कि एक दोहरा शुल्क भी है, जिसे भारत अनुचित मानता है। यह शुल्क रूस से ईंधन खरीदने के कारण लगाया गया है, जबकि कई अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “अंत में, अमेरिका के साथ व्यापारिक समझ बनाना जरूरी है, क्योंकि वह दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन यह समझ हमारी आधारभूत सीमाओं का सम्मान करती होनी चाहिए। कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर बातचीत की जा सकती है, और कुछ ऐसे हैं जिन पर नहीं।” जयशंकर ने भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया और कहा कि बातचीत मार्च से चल रही है।
विदेश मंत्री ने कहा कि संबंधों में तनाव का असर बातचीत के हर पहलू पर नहीं पड़ रहा है। उन्होंने कहा, “समस्याएं हैं, लेकिन उन पर चर्चा और समाधान की आवश्यकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि संबंधों का एक बड़ा हिस्सा पहले की तरह ही है या कुछ मामलों में तो बेहतर है।
जयशंकर ने वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिति पर भी प्रकाश डाला और कहा कि दुनिया एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के कमजोर होने की बात की और चीन के संदर्भ में वैश्विक विनिर्माण के संकेंद्रण पर चिंता व्यक्त की।
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव तब बढ़ा जब अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को दोगुना कर दिया। भारत ने इसे अनुचित करार दिया है। हालांकि, पिछले महीने मोदी और ट्रंप के बीच बातचीत के बाद व्यापार समझौते पर काम करने के प्रयास हुए हैं।
जयशंकर के बयान से यह स्पष्ट होता है कि भारत अपनी मूल हितों पर समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए निर्णय लेने में स्वतंत्र है। यह स्पष्टता भारत की विदेश नीति की स्वायत्तता को दर्शाती है।
अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, लेकिन भारत की बहु-विकल्प नीति उसे स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है। जयशंकर ने कहा कि संबंधों में मतभेद हैं, लेकिन वे साझेदारी को परिभाषित नहीं करते।
भारत अब अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे झुकने वाला नहीं है। वह वैश्विक शक्ति समीकरण में स्वतंत्र धुरी के रूप में उभर रहा है। अमेरिका के साथ सहयोग महत्वपूर्ण है, लेकिन यह समानता और साझा हितों पर आधारित होगा। जयशंकर ने कहा, “समस्याएँ स्वाभाविक हैं, पर संकट नहीं।” यह बयान भारत की नव-सशक्त विदेश नीति का प्रतीक है।