बिहार की अर्थव्यवस्था: चुनावी नतीजों से पहले उद्योग और रोजगार की स्थिति
बिहार की आर्थिक स्थिति पर नजर
बिहार की अर्थव्यवस्था.
बिहार आज चुनाव परिणामों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या नया नेतृत्व राज्य की औद्योगिक स्थिति और रोजगार के हालात में सुधार ला सकेगा? बिहार की अर्थव्यवस्था पुरानी चुनौतियों, धीमी प्रगति और नई संभावनाओं का मिश्रण प्रस्तुत करती है.
बिहार को लंबे समय से ‘बीमारू’ राज्यों में गिना जाता रहा है, और इसके कारण आज भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं. राज्य की प्रति व्यक्ति आय लगभग 60,000 रुपये है, जो राष्ट्रीय औसत का एक तिहाई है. शहरीकरण की दर केवल 12% है, जबकि देश में यह लगभग 36% है. इसका अर्थ है कि आर्थिक अवसर कुछ विशेष क्षेत्रों तक सीमित हैं, और अधिकांश लोग ग्रामीण, कम आय वाले ढांचे में फंसे हुए हैं.
औद्योगिक विरासत का पतन
कभी औद्योगिक गतिविधियों से भरे क्षेत्रों की स्थिति अब खस्ताहाल हो गई है. सारण जिले का मरहौरा इसका एक प्रमुख उदाहरण है. यहां की प्रसिद्ध मॉर्टन टॉफी फैक्टरी, इंजीनियरिंग इकाइयां और चीनी मिलें अब बंद हो चुकी हैं. स्थानीय लोग रोजगार की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं.
भागलपुर, जिसे पहले ‘भारत की रेशम राजधानी’ कहा जाता था, अब अपनी पुरानी चमक को वापस पाने के प्रयास में है. लगभग 60,000 बुनकर अभी भी काम कर रहे हैं, लेकिन व्यापार का आकार नहीं बढ़ पा रहा है. हालांकि नई एरी-सिल्क परियोजनाएं शुरू हुई हैं, लेकिन उनके परिणाम धीमे हैं.
नवीनतम निवेश: आशाएं और सावधानियां
हाल के वर्षों में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण औद्योगिक परियोजनाएं शुरू की हैं. पटना के बिहटा में खाद्य प्रसंस्करण और छोटे विनिर्माण इकाइयां खुल रही हैं, जिससे कुछ सौ लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है. गया में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है, जहां 1,670 एकड़ में बिहार इंटीग्रेटेड मैन्युफैक्चरिंग सिटी का निर्माण हो रहा है, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में नई परियोजनाओं में 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश प्रस्तावित है.
ऊर्जा और भारी उद्योगों में भी बड़े निवेश हो रहे हैं, जैसे भागलपुर में 2,400 मेगावाट का पावर प्लांट और नवादा में सीमेंट यूनिट, जो भविष्य में रोजगार के नए अवसर प्रदान कर सकते हैं.
रोजगार की वृद्धि में बाधाएं
हालांकि आंकड़े बताते हैं कि बिहार में बेरोजगारी कम हुई है, असली समस्या ‘रोजगार की गुणवत्ता’ है. नियमित वेतन वाली नौकरियों की संख्या बहुत कम है. अधिकांश लोग ऐसे कार्यों में लगे हैं जिनमें वेतन और सुरक्षा दोनों ही बेहद कम हैं. इसका अर्थ है कि लोग काम कर रहे हैं, लेकिन बेहतर जीवन का सपना अभी भी दूर है. बिहार की युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने स्थान पर बेहतर अवसरों की प्रतीक्षा कर रहा है.
चुनावी नतीजों के बीच महत्वपूर्ण प्रश्न
जैसे ही चुनाव परिणामों के बक्से खुलेंगे और नया नेतृत्व सामने आएगा, जनता की नजर केवल विजेताओं पर नहीं होगी, बल्कि इस बात पर भी होगी कि क्या वे बिहार के उद्योगों को नई गति दे पाएंगे. क्या पुरानी फैक्ट्रियां फिर से चालू होंगी? और क्या युवा बिहार में रोजगार प्राप्त करेंगे या पलायन जारी रहेगा?