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सहदेवी: एक अद्भुत औषधीय पौधा और इसके लाभ

सहदेवी, जिसे अश फ्लीबेन भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो आयुर्वेद में कई लाभ प्रदान करता है। इसकी विशेषताएँ और उपयोग इसे एक अनमोल औषधि बनाते हैं। जानें इसके अद्भुत गुण और स्वास्थ्य के लिए इसके 36 चमत्कारी फायदे। यह पौधा न केवल ज्वर, बल्कि कई अन्य रोगों में भी लाभकारी है। इसके सेवन से स्वास्थ्य में सुधार और विभिन्न बीमारियों से राहत मिल सकती है।
 

सहदेवी का परिचय


सहदेवी, जिसे अश फ्लीबेन भी कहा जाता है, एक नाजुक पौधा है जिसकी ऊँचाई एक से तीन फीट तक होती है। यह पौधा तंत्र शास्त्र और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके अद्भुत गुणों के कारण इसे देवी का दर्जा प्राप्त है। सहदेवी की पत्तियाँ तुलसी और पोदिना की पत्तियों के समान पतली होती हैं, और इसके सफेद फूल होते हैं। यह पौधा आमतौर पर बलुई मिट्टी में पाया जाता है और इसकी कई जातियाँ होती हैं।


सहदेवी के नाम और उपयोग

संस्कृत में इसे महबला, सहदेवी, सहदेवा, और अन्य नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे सहदेवी, सदोई, और बंगाली में पीत पुष्प कहा जाता है।


प्रयोजन अंग: मूल, पुष्प, बीज और पंचांग। स्वाद: तीखा। गुण: स्वेदजन्न, कृमिघ्र, शोथघ्र। उपयोग: जलोधर और विषम ज्वर में लाभकारी।


सहदेवी के 36 अद्भुत लाभ


  1. ज्वर में पसीना लाने के लिए इसका काढ़ा या स्वरस दिया जाता है।

  2. बिस्फोटक में सहदेई के पंचांग का लेप करने से सभी प्रकार के विस्फोटकों का नाश होता है।

  3. मूत्रदाह रोग में इसका स्वरस दिया जाता है।

  4. उद्वेष्टन रोग में इसका स्वरस लाभकारी होता है।

  5. थोथयुक्त भाग पर इसका स्वरस लगाने से लाभ होता है।

  6. कृमि रोग में इसके बीज शहद के साथ देने से कृमियों का नाश होता है।

  7. अर्श (बवासीर) में इसके पंचांग से लाभ होता है।

  8. सहदेई का मूल सर के पास रखकर सोने से निद्रा आती है।

  9. अश्मरी (पथरी) में इसके पत्तों का स्वरस और तुलसी के पत्तों का स्वरस मिलाकर सेवन करने से पथरी बाहर निकल जाती है।

  10. मुख रोग में इसके मूल का काढ़ा कुल्ला करने से लाभ होता है।

  11. कुष्ट रोग में पीत पुष्प वाली सहदेई का स्वरस पीने से लाभ होता है।

  12. सहदेवी की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है।

  13. इसके नन्हे पौधे गमले में रखकर सोने से अच्छी नींद आती है।

  14. बुखार होने पर इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है।

  15. 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से लीवर को पुनर्जीवित किया जा सकता है।

  16. रक्तदोष, खाज खुजली और त्वचा की सुंदरता के लिए 2 ग्राम सहदेवी का पाउडर खाली पेट लेना चाहिए।

  17. कंठमाला रोग में इसकी जड़ गले में बांधने से शीघ्र रोग मुक्ति होती है।

  18. यदि कोई स्त्री मासिक धर्म से पहले और बाद में सहदेवी का सेवन करे तो गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

  19. दूध में पीसकर नस्य लेने से स्वस्थ संतान होती है।

  20. प्रसव-वेदना निवारक इसकी जड़ का तेल में लेप करने से प्रसव पीड़ा से राहत मिलती है।

  21. सहदेई के पत्ते काली मिर्च के साथ पीसकर पीने से ज्वर दूर होता है।

  22. सहदेई की ठंडाई पिलाने से बालक को शीतला नहीं निकलती है।

  23. सहदेई के पत्ते उबालकर बांधने से मस्तिष्क की पीड़ा शांत होती है।

  24. सफेद फूल वाली सहदेई के पत्तों का रस निकालकर कडवी तोमड़ी और गुजराती तंबाकू मिलाकर सुंघने से मृगी रोग शांत होता है।

  25. सफेद सहदेई के फूल और काली सहदेई का पत्ता उबालकर सिर पर बांधने से लकवा रोग दूर होता है।

  26. सहदेई के पत्तों का काजल लगाने से आँखों की समस्या ठीक होती है।

  27. सहदेई के पत्ते पीने से सभी प्रकार के ज्वर और पथरी रोग दूर होते हैं।

  28. अर्क पीने से वाय गोला दूर होता है।

  29. इसकी जड़ को तेल में पीसकर घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है।

  30. इसका अर्क कान में डालने से मृगी रोग दूर होता है।

  31. इसकी जड़ सिर में बांधने से ज्वर दूर होता है।

  32. सहदेवी का पंचांग पीने से रक्त प्रदर रोग दूर होता है।

  33. इसकी लुगदी में पारा फूँका जाता है।

  34. सहदेवी का पंचांग पीने से श्वेत प्रदर रोग दूर होता है।

  35. हरिताल के साथ इसकी जड़ का लेप करने से श्लीपद रोग में लाभ होता है।