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रीठा: बवासीर और अन्य रोगों के लिए प्रभावी औषिधि

रीठा, जिसे Soap Nut के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राकृतिक औषिधि है जो बवासीर और अन्य कई रोगों के उपचार में प्रभावी है। इस लेख में हम रीठा के औषधीय गुणों, इसे बनाने की विधि, सेवन के तरीके और इसके सेवन के दौरान ध्यान रखने योग्य बातों पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे यह साधारण फल आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है।
 

रीठा का औषधीय उपयोग


  • यह नुस्खा एक महात्मा से प्राप्त हुआ है, और प्रयोग करने पर 90% मरीजों को लाभ मिला है। आइए जानते हैं इस नुस्खे के बारे में।


औषिधि बनाने की विधि:


  • रीठा के फल से बीज निकालकर, शेष भाग को लोहे की कढ़ाई में डालकर तब तक गर्म करें जब तक वह कोयला न बन जाए। फिर इसे आंच से उतारकर समान मात्रा में पपड़िया कत्था मिलाकर छान लें। आपकी औषिधि तैयार है।


औषिधि का सेवन कैसे करें:


  • इस औषिधि की एक रत्ती (125 मिलीग्राम) को मक्खन या मलाई के साथ सुबह-शाम सेवन करें। यह प्रक्रिया सात दिनों तक जारी रखें।
  • सात दिनों के सेवन से कब्ज, बवासीर की खुजली और खून बहने की समस्या में राहत मिलती है।
  • यदि आप स्थायी राहत चाहते हैं, तो हर छह महीने में इस कोर्स को दोहराएं।


रीठा के अन्य नाम:


  • संस्कृत - अरिष्ट, रक्तबीज, मागल्य
  • हिन्दी - रीठा, अरीठा
  • गुजराती - अरीठा
  • मराठी - रीठा
  • मारवाड़ी - अरीठो
  • पंजाबी - रेठा
  • कर्नाटक - कुकुटेकायि


सेवन के दौरान परहेज़:


  • सात दिनों तक नमक का सेवन न करें। आयुर्वेद में पथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।


सेवन के दौरान क्या खाएं:


  • मुंग या चने की दाल, पुराने चावल, बथुआ, करेला, कच्चा पपीता, गुड़, दूध, घी, मक्खन, काला नमक आदि का सेवन करें।


सेवन के दौरान क्या न खाएं:


  • उड़द, भारी और भुने पदार्थ, धूप या ताप से बचें।


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रीठा के फायदे:


  • रीठा के छिलके का उपयोग बवासीर, जुकाम, कान में मैल जमना, और अन्य कई रोगों के उपचार में किया जाता है।