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रामायण की कथा: माता सीता का तिनका उठाने का रहस्य

रामायण की कथा में माता सीता का तिनका उठाने का रहस्य छिपा है। जब लंकापति रावण उन्हें अशोक वाटिका में रखता था, तो माता सीता घास का तिनका उठाकर एक महत्वपूर्ण वचन का पालन करती थीं। यह वचन राजा दशरथ से जुड़ा है, जिसने माता सीता से कहा था कि वह अपने शत्रु को कभी नहीं देखेंगी। जानें इस कथा के पीछे का गहरा अर्थ और माता सीता की शक्ति।
 

रामायण की कथा

रामायण कथा

रामायण कथा: लंकापति रावण ने माता सीता का अपहरण किया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा। लेकिन रावण कभी भी मां जानकी को छूने की हिम्मत नहीं कर पाया। जब भी वह माता सीता के पास जाता, वह घास का तिनका उठा लेतीं। आइए जानते हैं कि इस तिनके का क्या रहस्य है। आखिर क्यों माता सीता रावण के आते ही तिनका उठाती थीं और रावण को उन्हें छूने की हिम्मत क्यों नहीं हुई?

रामायण के अनुसार, माता सीता का तिनका उठाना राजा दशरथ को दिए गए एक वचन से जुड़ा है। एक बार अयोध्या के राजमहल में सभी को भोजन परोसा जा रहा था। उस समय माता कौशल्या सभी को प्रेम से खाना खिला रही थीं। इसके बाद माता सीता ने खीर परोसना शुरू किया। जब सभी खाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी अचानक तेज हवा चलने लगी और सभी ने अपनी पत्तलों को संभाला।

सीता जी ने तिनके को ध्यान से देखा

इस समय माता सीता ने देखा कि राजा दशरथ की खीर में एक छोटा सा तिनका गिर गया है। वह इस स्थिति में दुविधा में थीं, क्योंकि वह खीर में हाथ डालकर तिनके को निकाल नहीं सकती थीं। ऐसे में माता सीता ने उस तिनके को दूर से ही ध्यान से देखना शुरू किया। उन्होंने बिना पलक झपकाए उस तिनके को देखा।

कुछ ही समय में वह तिनका जलकर राख हो गया। इसके बाद माता सीता ने अपनी नजरें हटा लीं, उन्हें लगा कि ऐसा करते हुए किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ ने सब कुछ देख लिया। हालांकि, उन्होंने उस समय माता सीता को कुछ नहीं कहा। भोजन के बाद राजा दशरथ अपने कक्ष में लौटे और माता सीता को बुलवाया।

राजा दशरथ ने माता सीता से मांगा वचन

राजा दशरथ ने माता सीता को बताया कि उन्होंने उनका चमत्कार देखा है। उन्होंने कहा कि माता सीता साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं। इसके बाद राजा दशरथ ने उनसे एक वचन मांगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उन्होंने उस घास के तिनके को देखा, उसी तरह से वह अपने शत्रु को कभी नहीं देखेंगी।

माता सीता ने राजा दशरथ को यह वचन दे दिया, और यही कारण है कि उन्होंने रावण को कभी उस नजर से नहीं देखा। यदि वह ऐसा करतीं, तो रावण भी उस तिनके की तरह राख हो जाता।

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