कीर्तिमुख: शिव के तीसरे नेत्र से उत्पन्न शक्तिशाली रक्षक
कीर्तिमुख: एक अद्भुत प्रतीक
कीर्तिमुख Image Credit source: AI
कीर्तिमुख: यह एक ऐसा नाम है जो सुनने में अजीब लग सकता है। यह एक अद्वितीय मुख है, जिसका कोई शरीर नहीं है, और जिसने अपने आप को खाकर अपनी महिमा प्राप्त की। हिंदू और बौद्ध मंदिरों में अक्सर इसे प्रवेश द्वार पर देखा जाता है, जो केवल सजावट नहीं, बल्कि एक गहरा रहस्य और शक्तिशाली प्रतीक है। इसे भगवान शिव के तीसरे नेत्र से उत्पन्न एक रक्षक माना जाता है, जो रावण से भी अधिक शक्तिशाली है। आइए, जानते हैं इस अनोखे रक्षक की कहानी और इसके पीछे के गहरे अर्थ।
कीर्तिमुख की विशेषताएँ
कीर्तिमुख का अर्थ है 'महिमा का मुख'। यह एक विकराल चेहरे वाली आकृति है, जिसमें बड़े दांत, उभरी हुई आंखें और विशाल सिंह जैसी नाक होती है, लेकिन इसका शरीर गायब होता है। इसे मंदिरों के तोरण दरवाजों और मूर्तियों के ऊपर सजाया जाता है। इसे केवल एक डरावना चेहरा समझने की गलती न करें, क्योंकि यह अहंकार और नकारात्मकता का नाश करने वाला एक शक्तिशाली प्रतीक है।
भगवान शिव के तीसरे नेत्र से उत्पत्ति
कीर्तिमुख की उत्पत्ति की सबसे प्रसिद्ध कथा शिव पुराण में मिलती है। एक बार, भगवान शिव गहन तपस्या में थे, तभी राहु ने उनके सिर पर लगे चंद्रमा को ग्रहण लगाने का प्रयास किया। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनके तीसरे नेत्र से एक भयंकर राक्षस का जन्म हुआ। यह राक्षस इतना भयानक था कि राहु डरकर भाग गए और शिव से क्षमा मांगने लगे। शिव ने राहु को माफ कर दिया, लेकिन राक्षस ने कहा कि उसे भूख लगी है। तब शिव ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हारे लिए भोजन कुछ और नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही हो।"
अहंकार का नाश और कीर्तिमुख का नाम
राक्षस ने शिव की आज्ञा का पालन करते हुए अपने शरीर को खाना शुरू कर दिया। उसने अपने पैर, हाथ और पेट सब कुछ खा लिया, और अंत में केवल उसका सिर और मुख ही बचा रहा। भगवान शिव ने राक्षस की इस भक्ति को देखकर उसे 'कीर्तिमुख' नाम दिया और आशीर्वाद दिया कि वह मंदिरों के द्वार पर रहेगा।
कीर्तिमुख का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ
कीर्तिमुख केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रतीक है। यह अहंकार का विनाश, आत्म-त्याग और समर्पण, शुभ का रक्षक, और कालचक्र का प्रतीक है। अगली बार जब आप किसी मंदिर में जाएं और कीर्तिमुख को देखें, तो याद रखें कि यह केवल एक डरावनी आकृति नहीं, बल्कि त्याग और अच्छाई की जीत का प्रतीक है।